Thursday, September 8, 2011

तब्दील

मेरा बस चले तो वक्त को तहरीरों में तब्दील कर दूं
हर गज़ल और नज़्म को अपनी कलम से अदील कर दूं |

2 comments:

  1. बहुत खूब कहा हर्ष जी...आपने उर्दू क्या बा-काएदा पढ़ी है???कमाल का ज्ञान है आपका.

    ReplyDelete
  2. विद्या जी ऐसा कुछ नहीं है...पेरेंट्स जो घर में रोज़मर्रा की जिंदगी में शब्द इस्तेमाल करते हैं वही हम भी इस्तेमाल करते हैं ....शुक्रिया पसंदगी के लिए

    ReplyDelete