Saturday, March 31, 2012

मुझे वो परवाज़ न देना कि वापिस आ न सकूं

मुझे वो परवाज़ न देना कि वापिस आ न सकूं
मिसरों से यूँ जुदा न करना कि तुम्हे पा न सकूं ।
बहूत लिए हैं इंतकाम बे-रहम दुनिया ने मुझ से
बा-कायदा मतले में रखना कि तुम्हे भुला न सकूं ।

__________________हर्ष महाजन

मेरे दर पर आने वाले तेरी तदबीर बना दूं


मेरे दर पर आने वाले तेरी तदबीर  बना दूं
अलख जगे हो जिसमे ऐसी तस्बीर बना दूं ।

______________हर्ष महाजन

Friday, March 30, 2012

वो तलख मोहब्बत की गलियाँ, मुझको जाने क्यूँ रोके हैं

वो तलख मोहब्बत की गलियाँ, मुझको जाने क्यूँ रोके हैं,
फिर सख्त डाल वो अम्बिया की, जहां झूले वो क्यूँ टोके है ।

फूलों की तरह मैं बिखरा यहाँ जिस बाग़ का कोई माली नहीं,
मैं महका-महका फिरता यहाँ, खुशबू   उसकी क्यूँ रोके हैं  ।

गम में मेरा हमदर्द वो था ज़ुल्मत में भी था गमख्वार वही,
वो था भी कमाल-ए-इश्क मेरा, फिर गम जाने क्यूँ झोंके है ।

वो था भी फ़िदा मेरी जुल्फों पे जो अब तक वादा निभावे है,
तू फलक पे है या गर्दिश में आ जनम-जनम के मौके हैं ।

मेरे सबर का दामन उजड़ गया, फ़रियाद भी मेरी उजड़ गयी,
अब 'हर्षा' के अरमानों  में नया इक मौत का फतवा ठोके है ।


___________________________हर्ष महाजन

Thursday, March 29, 2012

कभी हक की रोशनी में कभी हक के फासलों में

कभी हक की रोशनी में कभी हक के फासलों में,
वो ज़िन्दगी में मेरी  जाने कहाँ-कहाँ से गुज़रा ।

कभी दिल की धडकनों में कभी अश्क के सफ़र में
वो हर भंवर में शामिल मैं जहां-जहां से गुज़रा । 

मुझे कुछ पता नहीं था,  ये इश्क क्या बला थी,
वो जिस गली से गुज़रा मैं वहाँ-वहाँ से गुज़रा ।

जब इश्क में था ये दिल, इक बे-रुखी से गुज़रा
दिल अश्क-बार लेकर  फिर इम्तिहाँ से गुज़रा ।

मैं खुद भी तो हैराँ हूँ , मैं किस डगर से गुज़रा,
मुझे इल्म ही नहीं, गम के कारवाँ से गुज़रा ।


________________हर्ष महाजन

ये किस तरह की रौनक तुम किस गली से गुज़रे

..

ये किस तरह की रौनक हम किस गली से गुज़रे
इक ज़िन्दगी थी गुजरी , फिर ज़िन्दगी से गुज़रे ।

______________________हर्ष महाजन

भांवो पे तुम्हारे क्या लिखूं

भांवो पे तुम्हारे क्या लिखूं
इकरार लिखूं तकरार लिखूं ।
शरारत जो देखूं अखियों में ,
अब प्यार लिखूं इनकार लिखूं ।

______हर्ष महाजन

कितना अदब था उसको जब हम बाग़ में जाया करते थे

कितना अदब था उसको जब हम बाग़ में जाया करते थे
सुबहो शाम ले हाथ में हाथ फिर छोले खाया करते थे ।

न थी परवाह कोई पैसों की न चाह ही बताया करते थे
जो होता अपने पास दोनों इक दूजे पर जाया करते थे ।

न थी कोई फिक्र महंगायी की जुल्फों पे न खर्चा करते थे
दिल फ़ेंक महोब्बत करते थे बे-बाक फिर चर्चा करते थे ।

हो जाती थी तकरार कभी पल-पल तडपाया करते थे,
इंतज़ार सुबहो की करते करते सब भूल जाया करते थे ।

अब देख जेब को डरते हैं अखबार को रोज़ ही पड़ते हैं
हर चीज़ के भाव बदलते ही, तेवर बीवी के बदलते हैं ।

अब डर है सावन आते आते उसका रुख अब क्या होगा,
वादा जो किया था कपड़ों का न होगा पूरा तो क्या होगा ।


_________________________हर्ष महाजन

चश्म-ए-तर हुए जाते हैं उनके,मेरी तनख्वाह देखकर

चश्म-ए-तर हुए जाते हैं उनके,मेरी तनख्वाह देखकर
कितना बेबस हूँ मैं, उसे इस तरह लापरवाह देखकर ।

____________________हर्ष महाजन

बुज़ुर्ग किया न भूलियो, चल लाठी संग साथ

हर्ष महाजंस सिक्स लायीनार्स
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बुज़ुर्ग किया न भूलियो, चल लाठी संग साथ 
दुःख में उनको झेलियों, फ़र्ज़ निभा दिन-रात ।
फ़र्ज़ निभा दिन-रात, श्रवण के भाँती लीजो  ,
क़र्ज़ दूध का जान, उन्हें कुछ कमी न दीजो ।
कहे 'हर्ष' समुझाए, अपने कु करदे सुपुर्द,
उसी डगर गुजरना,  जब होवेगा तु बुज़ुर्ग ।

___________________हर्ष महाजन ।

Wednesday, March 28, 2012

राह-ए-वफ़ा भटके तो किनारा नहीं मिलता

राह-ए-वफ़ा भटके तो किनारा नहीं मिलता ,
  गर फूल टूटे  डाल से दुबारा नहीं खिलता ।

___________हर्ष महाजन

मेरी किस्मत शायद पाश-पाश होने को है तैयार

मेरी किस्मत शायद पाश-पाश होने को है तैयार,
ये महेंगायी का दौर तो मेरे घर में भी है बर-करार ।

किस तरह मनाऊंगा अपनी बीवी को ऐसे दौर में
जब दी थी फेहरिस्त और  कहा जाते हुए भोर में ।

सूट ले लेना साडी ले लेना,सैंडल ले लेना मेरे दिलदार
पाउडर करीम भूल न जाना इतर भी लेना खुशबूदार ।

राशन-वाषण भूल गया मैं हुक्म था उसका सर पे सवार
इक-इक शौपिंग कर डाली हुए होश फाख्ता देख बिल का सार ।

किया भुगतान तो देखा हमने कुछ और रकम की थी दरकार
रही सही इज्जत की उड़ गयी दज्जियाँ देखो अबकी बार ।

जिस चीज़ को देखो ऊंचे दाम हर चीज़ मुझ पे गुर्रायी
अबके मैंने सह लिया बस  अब और न सहेगी महंगायी ।

यूँ देख के मेरी घबराहट को बीवी कुछ-कुछ घबरायी
देख के खाली राशन का थैला  इतर को देख के शर्मायी ।

फिर प्यार से दे के चुम्बन कहा महंगाई सजन तुम भूल जाओ
मेरी फेहरिस्त नहीं चलेगी तुम अपनी फहरिस्त पर जाओ ।


________________________हर्ष महाजन

महंगायी-एक हास्य कविता

हे प्रिये ! आज मुझे किस तरह बहला रहे हो ,
बर्गर पीजा की जगह दाल-रोटी खिला रहे हो ।
प्रेम का रंग किस तरह से चढ़ा आज तुम पर
मुझे कार की जगह स्कूटर पर लिए जा रहे हो ।
उदास हूँ बहुत दिनों से कंगन लेने की आस थी,
मुझे लगता है इसी लिए सब कुछ बचा रहे हो ।

ये कैसी विडंबना है आज मेरी ऐ अहसास ए ज़िगर,
क़र्ज़ में डूबा, बर्गर पीज़ा का उधार चूका रहा हूँ मैं।
वो कार, जिसमे तुम बैठा करती थी, बिक चुकी है,
आजकल उसी से पेट्रोल, स्कूटर में, डलवा रहा हूँ मैं ।
चिंता न करें मेरी जान, आलू-चाट बेचता हूँ आजकल
तेरे कंगन के लिए आजकल पैसे बचा रहा हूँ मैं ।


______________हर्ष महाजन


किस तरह कमर-तोड़ महंगायी से जूझ रहा हूँ मैं

..

किस तरह कमर-तोड़ महंगायी से जूझ रहा हूँ मैं
वो क्या जाने ये सवाल किस तरह बूझ रहा हूँ मैं ।

कितना बेबस हूँ सब्जियों के दाम पूछ रहा हूँ मैं,
पेट्रोल और श्रृंगार से हमेशां कनफ्यूस रहा हूँ  मैं ।

कितना बेवक़ूफ़ हूँ यूँ ही कर्जों में डूब रहा हूँ मैं,
ये जानते हुए, सच्चायी से ही महफूज़ रहा हूँ मैं।


______________________हर्ष महाजन

वो शख्स मुझे शिकस्त देने की फ़िराक में रहता है

..

वो शख्स मुझे शिकस्त देने की फ़िराक में रहता है
हर बार होता है ध्वस्त,  फिर भी ताक में रहता है।

इल्म नहीं है उसे अपने इल्म के दर्जे का अभी 'हर्ष'
फिर भी वो बे-वज़ह अपनी खोखली धाक में रहता है।


___________________हर्ष महाजन  

ख्वाहिश-मंदों की तस्वीरें खींच रहा हूँ मैं

ख्वाहिश-मंदों की तस्वीरें खींच रहा हूँ मैं
याद करूंगा आप लोगों के बीच रहा हूँ मैं ।

आईने में देखता हूँ चेहरे की सिलवटें रोज़,
ढलती उम्र अब पल-पल सींच रहा हूँ मैं ।

उसके हुस्न की रानाई कब तक संभालूँगा,
इश्क तो है जिसे अब तक खींच रहा हूँ मैं ।

दावा नहीं करता उसे फिर से पा लेने का,
उसकी दी कसमे अभी तक पीच रहा हूँ मैं ।

उम्र का तो कुछ नहीं मालूम कहाँ तक है
पर लगता है आँखे पल-पल मीच रहा हूँ मैं ।

________________हर्ष महाजन
 

उनके हुनर पर वो अक्सर फब्तियां कसने लगे हैं

उनके हुनर पर वो अक्सर फब्तियां कसने लगे हैं,
आस्तीन में जो सांप थे वो बे-वजह डंसने लगे हैं ।

क्यूँ सजायी है ये बज़्म कि कला भी दम तोड़ने लगे,
जुर्म करने वाले मज़े में और बे-कसूर फंसने लगे हैं।

ज़ुल्म-ओ-सितम तो देखो किस तरह बरपा रहा यहाँ ,
दिन-दहाड़े अस्मतें लुटता देख शाहरिये हंसने लगे हैं ।

अब क्यूँ कोई ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ को बुलंद करे,
वो रक्षक बे-सबब इमानदारों पर शिकंजा कसने लगे हैं ।

क्या कोई समझ पायेगा इस दहशतजदा ज़िन्दगी को ,
वो दहशतगर्द यहाँ इक-इक कर फिर से बसने लगे हैं ।


__________________________हर्ष महाजन

Tuesday, March 27, 2012

अपने घर को छोड़ के, चली पराये गाँव

..

अपने घर को छोड़ के, चली पराये गाँव
काट दियो उसि डाल को,डाल तले जिस छाँव।
डाल तले जिस छाँव, सजन संग दूजे लागी,
वो नार बनी भुजंग, देख पर नार वो जागी ।
कहे 'हर्ष' समुझाए , न संजोयें ऐसे सपने,
पल में झटके जाएँ, रहें जु कभी थे अपने ।

__________________हर्ष महाजन

पतनी अपनी जात की, एकहू तरकश बाण

पतनी अपनी जात की, एकहू तरकश बाण
मियाँ जी के अगल-बगल, तनी जु तीर-कमान ।
तनी जु तीर-कमान, यु सौतन कैसे आवे
पति होए बेइमान, तो घर कु सर पे उठावे ।
कहें 'हर्ष' कविराय , घरां की खाओ चटनी
सौतन की न सोच, जब हो घर में जु पतनी ।


____________________हर्ष महाजन

वो नहीं है मेरा मगर मैंने इकरार किया है

वो नहीं है मेरा मगर मैंने इकरार किया है
सच कहूं तो उसकी बगावत से प्यार किया है ।
बे-वफायी तो देखो उसकी रगों में दौड़ रही है
भूल इल्लत सारी बस हालत से प्यार किया है ।

_____________________हर्ष महाजन


(साथियो पहला शेर मेरा बहूत पुराना है..उसमे एक शेर आज और जोड़ दिया है .....शुक्रिया । )

Monday, March 26, 2012

जुल्मी दरिंदा है फकत उस पर आँख रखना

जुल्मी दरिंदा है फकत उस पर आँख रखना
बहुत दिल फरेब है जरा अहतियात रखना  ।

______________हर्ष महाजन

जंग चलावे जबहु कभी, घर पर पहिला वार

आजकल के सन्दर्भ में उपयुक्त मेरा एक six liners ...जब किसी इंसान की मति मारी जाती है तो उसके घर को उजाड़ने के लिए बाहरी तत्त्व अपने कार्य को सिद्ध करने के लिए या यूँ कहें की अपना उल्लू सीदा करने के लिए उस का आँगन इस्तेमाल करते हैं ... और उस इंसान को तब पता चलता है..जब सब कुछ ख़तम हो जाता है ..।
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एक और पुरानी रचना ....हर्ष महाजन' स सिक्स लायीनर्स ....

जंग चलावे जबहु कभी, घर पर पहिला वार,
घायल जब समझे रहा , खुनी भयी तलवार।
खुनी भयी तलवार, कटे सब अपने भायी,
हरसुं छपी अखबार, भायी कु समझ न आयी ।
कहे 'हर्ष' समुझाए , सबहूँ को राखियो संग,
कबहुं जीत न पायी, चलायी के ऐसी जंग ।

_______________हर्ष महाजन

दुश्मन-दुश्मन कही के, दुश्मन लियो बनाई

दुश्मन-दुश्मन कही के, दुश्मन लियो बनाई ,
ऐसा दुश्मन बन गयो, दोस्त बने अब नाहि।
दोस्त बने अब नाहि, गले का बन गयो फंदा,
देवे गरदन काटि , मिले दुश्मन का जु बन्दा ।
कहे 'हर्ष' समुझाए, मिलिये हैं कम हू सज्जन,
बना के अच्छे दोस्त, कबहू समझो न दुश्मन ।


______________हर्ष महाजन 

चोर-चोर कहने लगा खुद ही घर का चोर

एक और पुरानी रचना ....हर्ष महाजन' स सिक्स लायीनर्स  ....

चोर-चोर कहने लगा खुद ही घर का चोर,
बस्ती सारी जगाये ली मचा-मचा के शोर
मचा-मचा के शोर, बहुतेरे नाम सुझाए
रंगत उसकी देख,किसी के समझ न आये,
कहे 'हर्ष' कविराय, यु है अपराध घनघोर,
ऐसे घरां से बच , जिनहाँ के घर में चोर।

__________________हर्ष महाजन  

Sunday, March 25, 2012

कितने अथर्व पर्यासों से ये बज़्म सजायी

कितने अथर्व पर्यासों से ये बज़्म सजायी
कितने आसान पर्यासों से उजाड़ रहे हम,
कितने सोम्य कवियों से इसमें फूल सजाये
आज उन्ही के रस मैं ज़हर मिला रहे हैं हम ।

..
___________________हर्ष महाजन

Saturday, March 24, 2012

तेन्नु ख्वाबां च रोज़ बुलान्वां माँ

तेन्नु ख्वाबां च रोज़ बुलान्वां माँ
मेंनू तेरा ही मुखड़ा जचदा ।
तेतों अनहद प्यार मैं पावां माँ
मेंतों प्यार न तेरा पचदा ।
मेंनू दर्शन दे के तारी माँ
मेरी अखां च डोला तेरा सजदा ।
तेन्नु ख्वाबां च रोज़ बुलान्वां माँ
मेंनू तेरा ही मुखड़ा जचदा ।
तेरी हर थां लब्दियाँ छांवां माँ
मेंनू लाल चोला तेरा लबदा ।
दस् तेन्नु  किंज बुलान्वां माँ
मेंतों छतर तेरा नैयुं सजदा ।
तेन्नु ख्वाबां च रोज़ बुलान्वां माँ
मेंनू तेरा ही मुखड़ा जचदा ।

________हर्ष महाजन

मैं आया शेराँ वाली, मैं आया लाटां वाली

गीत


मैं आया शेराँ वाली, मैं आया लाटां वाली
तेरे दर ते माँ~~~~
मेंनू दर्शन दे दे शेराँ वाली माँ .......
मैं आया शेराँ वाली तेरे दर ते माँ ...
न ते छतर वि आज ल्याया माँ
ना ही चुनरी नु तारयाँ नाल सजाया माँ
बस श्रध्हा दे फुल ल्याया माँ
मेंनू दर्शन दे दे शेराँ वाली माँ .......
मैं आया शेराँ वाली, मैं आया लाटां वाली
तेरे दर ते माँ~~~~
रोज़ दिल दी ज्योत जलाना माँ
उस च तेल मैं प्यार डा पाना माँ
कदे फुर्सत होए मेरे दिल दे टोए कदे भर जाना
मैं ताँ राह च खड़ा हाँ ज्योताँ वाली माँ ।
एस गरीब दी झोली हो गयी खाली माँ
मेंनू दर्शन दे दे शेराँ वाली माँ .......


हर्ष महाजन  

Friday, March 23, 2012

माँ तुझको देखा ही नहीं, तू दे अपना अवतार कभी

माँ तुझको देखा ही नहीं, तू दे अपना अवतार कभी
ये दुनिया अजब निराली है मिलने न दे तेरा साथ कभी ।
जब ज्योत जलायी तूने माँ दुनिया से रिश्ता टूट गया,
मैं दर-दर तुझको देखूं माँ तू दिखा दे अपना द्वार कभी ।
तू हर तन जोड़े जगदम्बे तेरे प्यार कि कीमत मुझ पे नहीं
मैं पापी जुल्मी राही हूँ तू हर ले सभी मेरे खार कभी ।
माँ तुझको देखा ही नहीं, तू दे अपना अवतार कभी
ये दुनिया अजब निराली है मिलने न दे तेरा साथ कभी ।

___________________हर्ष महाजन

Thursday, March 22, 2012

गद्दारों ने जब जब यहाँ भारत माँ को ललकारा था

गद्दारों ने जब जब यहाँ भारत माँ को ललकारा था,
भारत माँ के योद्धाओं ने इक-इक कर दुत्कारा था ।
जब-जब हुआ हनन देश का बलिदानी अवतार हुए,
अंग्रेजो को सबक सिखाकर अपना इतिहास संवारा था ।
उठो साथिओ मानवता को सत्ताधारी देखो अब लूट रहे
याद करो कुर्बानी उनकी जिहे कण-कण भारत प्यारा था ।

_______________________हर्ष महाजन  

कितने ही महबूब अपनी कब्र में दफ़न हैं

कितने ही महबूब अपनी कब्र में दफ़न हैं ,
वो बेक़सूर इन बेवफाओं से फंसा करते हैं ।

___________________हर्ष महाजन

चुरा तो लिया है वो सब कुछ तुमने हमारे दिल के दरीचों से

चुरा तो लिया है वो सब कुछ तुमने हमारे दिल के दरीचों से
कहाँ से लायें वो जुबां जो बरसाए फूल मखमली बगीचों से।

_______________________________हर्ष महाजन

शुक्रियाना आपके लफ़्ज़ों के अम्बार देखकर

शुक्रियाना आपके लफ़्ज़ों के अम्बार देखकर
तुम्हे भी न होगी मायूसी हमारा प्यार देखकर ।

___________________हर्ष महाजन

महफ़िल में अब इक नयी क्षमा जलायी जायेगी

महफ़िल में अब इक नयी क्षमा जलायी जायेगी
हमारे प्यार के तेल में तेरी बत्ती लगायी जायेगी ।
इस बज़्म में अब बैठे हैं हम स्वागती ग़ज़लें लेके,
अपने अंदाज़-ए-बयाँ कुछ आग लगायी जायेगी ।

__________________हर्ष महाजन

कुड़ी टीर मारदी, मिन्नू लाग्दी भली ...............एक पंजाबी गीत


________( मेरा एक बहूत पुराना गीत )_________

कुड़ी टीर मारदी, मिन्नू लाग्दी भली
जेडी रोज़ ताड़दी, मिन्नू लाग्दी भली ।

पैल्ली वारी वेख्या ओहनू , सिर ते सी दुपट्टा
फड लया ओह्न्नु रख तली ते इज्जत खेड्या सट्टा ।
तिड गयी ओ ते, टुर गयी नाले, मार के सिर च वट्टा ।
कुड़ी टीर मारदी, मिन्नू......................

इक दिन चढ़ चौबारे चूपे आम्ब ते मारे गिटकाँ,
तंग गवांड़ी करन शिकायतां नाल पे मारन चिडकाँ
असाँ लगे सम्झोउन जे ओहनू, मारे सान्नू फिटकाँ
कुड़ी टीर मारदी, मिन्नू......................

टुरदी जाउन्दी ज़ुल्फ़ साम्बदी, बिट-बिट मुंडे ताड़े
खा भुलेखा राह च चलदे पै गए मुंडे सारे
तैश च आपां जद चढ़ाया, पै गयी विच बजारे
कुड़ी टीर मारदी, मिन्नू......................

हर्ष महाजन

Tuesday, March 20, 2012

शकुनि - एक व्यंग

शकुनि

मैं
शकुनि हूँ !
किन्तु आज----
मैं अकेला नहीं हूँ ।
धोखे हैं
पर
दोस्तों से
अधूरा नहीं हूँ ।

महाभारत काल में
रहा होगा
एक वफादार शकुनि !
आज सब के सब
शकुनी तो हैं !!
पर
बेवफा है ।

हर्ष महाजन

Monday, March 19, 2012

तुम न लगा पाओगे अंदाज़ा अपनी तबाही का

तुम न लगा पाओगे अंदाज़ा अपनी तबाही का
तुमने देखा नहीं है मुझको शाम होने के बाद ।

रंग हो जाता है काला ज़र्द सुबह नज़र नहीं आता
पाँव फिर उलटे नज़र आते हैं शाम होने के बाद ।

________________________हर्ष महाजन

एक व्यंग --मैं इतना गिरा हूँ

एक और व्यंग आपकी नज़र .....अब इस व्यंग को आप कहाँ तक समझ पाते हैं मालूम नहीं ?
_______________

मैं पिछले जन्म में
अपने गोरे रंग से
इतना गिरा था (यथार्थ में )
कि गिरावट कि सीमा
टूट चुकी थी ।
और अबलाओं कि किस्मत
रूठ चुकी थी ।
क्योंकि मैं
मन का काला था ।

फिर वक़्त ने

एक अजीब सी करवट ली
इस जन्म में
मैं अपने काले रंग में
इतना उठा हूँ (कल्पना में )
कि पवित्रता
पीछे छूट चुकी है
दिल का साफ़ हूँ
मगर क्या करूँ!!!!
मेरे पास कोई आता नहीं
खुद उनकी ओर
खिचा चला जाता हूँ
हे अबला !
तेरी बस यही कहानी है
सच अब मेरी जबानी है ।

हर्ष महाजन

एक व्यंग - आजकल का कृष्ण

दोस्तों वक़्त नहीं मिल पाया सो लेट हूँ....मैं यहाँ एक अद्भुत व्यंग पेश करने की कोशिश करना चाहता हूँ...उम्मीद है वो उसी भाव में आप तक पहुंचे गा...

भगवान् कृष्ण ...महाभारत के युग में कौरवों की ओर से युध्ह में शामिल थे...आज कल के युग के कृष्ण उस वक़्त की बातों को कलयुगी तरीके से कैसे देखते हैं ...एक झलक .....
_______________________________
हे ! अर्जुन ...
सुनो ....
मैं हूँ ...
कलयुग का कृष्ण ।
अबकि मेरा
सिर्फ एक ही मिशन ।

तुम गोरे हो
कई गोपियाँ
आपके इर्द गिर्द घूमेंगी,
हर बार मुझे छोड़
तुम्हारे साथ झूमेंगी ।

ये कलयुग है ,
कुछ मेरा भी सोचो,
सबकुछ अकेले न नोचो ।
तुम्हारे लिए महाभारत में
मैंने क्या -क्या नहीं किया,
और कलयुग में
अभी तक
कुछ नहीं किया ।
मैं काला हूँ ...सांवला हूँ
पर दिलवाला हूँ और चाह वाला हूँ ।

मुझे भी
इन गोपियों का
संग पा लेने दो,
इनका
अस्मरण रस पी लेने दो ।
कलयुग तो अब
अपने तबो-ताब पे आने वाला है
सब कुछ हाथ  से जाने वाला है ।
मेरे रंग को
बदनाम न होने देना
कलयुग का नाम
न डूबने देना ।



हर्ष महाजन 

Friday, March 16, 2012

तुमने किस तरह मेरी तकदीर की तस्वीर बनायी है

तुमने किस तरह मेरी तकदीर की तस्वीर बनायी है,
मेरी तहरीरों में 'हर्ष' तासीर तेरे शब्दों से ही आयी है।

क्या कहूं मेरे हमदर्दों की बे-वफायी ने मुझे छेड़ा है,
तभी से इस शहर में मेरी कलम का मुसलसल डेरा है।

______________________हर्ष महाजन

ये जुल्फें अब उम्र की मोहताज़ नहीं हैं

ये जुल्फें
अब
उम्र की
मोहताज़ नहीं हैं !!

ये रुख पे !
अगर
बिखर भी जाएँ
तो क्या है !!

गर लट में
अब
उसके
तरोताज़ नहीं है ।

अब
रंगने से इन्हें
दिल भी !
निखर जाए
तो क्या है !!



हर्ष महाजन 

अपने शहर में वो दिल्लगी का सौदा खूब किया करते हैं

अपने शहर में वो दिल्लगी का सौदा खूब किया करते हैं,
बे-वफायी भी बे-हिसाब और दिल तौड जिया करते हैं ।
बदल लिया करते हैं सब यार वहाँ तवायफों की मानिंद,
ज़िन्दगी बिन-उसूल और हुस्न बे-खौफ जिया करते हैं ।

__________________________हर्ष महाजन

ये जुल्फें अब उम्र की मोहताज़ नहीं हैं

ये जुल्फें
अब
उम्र की
मोहताज़ नहीं हैं !!

ये रुख पे !
अगर
बिखर भी जाएँ
तो क्या है !!

अब
रंगने से इन्हें
दिल भी !
निखर जाए
तो क्या है !!

हर्ष महाजन

Thursday, March 15, 2012

जाने इस शहर में ज़ख्मों की दूकान कहाँ हैं

जाने इस शहर में ज़ख्मों की दूकान कहाँ हैं
छलनी सीना मेरे पास है पर अरमान कहाँ हैं ।
कुछ भी करलें बे-वफायी करने वाले मेरे साथ
मेरे साथ हमदर्द बहूत हैं पर उनकी जुबान कहाँ है ।

____________________हर्ष महाजन

इस बे-वफ़ा शहर में अब हमदर्द भी खूब निकले

इस बे-वफ़ा शहर में अब हमदर्द भी खूब निकले,
बे-दर्द भी खूब निकले कमज़र्द भी खूब निकले ।

किसी को देके ज़ख्म बे-वफायी यूँ चली आएगी
खबर नहीं थी मुझको वो मेरे ही महबूब निकले ।

_______________हर्ष महाजन

किस तरह आज रात सियाही सी उभर आयी है

किस तरह आज रात सियाही सी उभर आयी है
मेरे सुंदर चंदा पे बदली सी क्या चली आयी है ।
अश्क बहा दिए हैं शायद जो सब जगह नमी है
मुझे पता है मेरे लिए आज इक कलि आई है ।

________________हर्ष महाजन

मेरे ख्यालात मेरी पेशानी पे अक्सर झलकते हैं

मेरे ख्यालात मेरी पेशानी पे अक्सर झलकते हैं,
तमाम रात सोचता हूँ फिर उस चाँद पे अटकते हैं ।
फिर किस तरह कम करूँ गम-ए-दौराँ ज़िन्दगी का,
वो हर बार इस दिल में पनपते हैं फिर भटकते हैं ।

_______________________हर्ष महाजन

मुसलसल ऐ खुदा तुम ख्वाहिशों को कम न करना

मुसलसल ऐ खुदा तुम ख्वाहिशों को कम न करना
मैं इजाद चाँद करूंगा तुम रातों को कम न करना ।

______________________हर्ष महाजन

हम कैसे बताएं तुम्हें चाँद का नज़ारा क्या है

हम कैसे बताएं तुम्हें चाँद का नज़ारा क्या है,
ताब पे हो आफताब तो कहें वो हमारा क्या है ।
अच्छा नहीं है बार-बार उसे रातों को बुलाना
वो खुद कहता है हमारा क्या है तुम्हारा क्या है ।

__________________हर्ष महाजन

दुनिया ने मुझे किसलिए बदनाम किया है

दुनिया ने मुझे किसलिए बदनाम किया है,
वो मेरा मुक़द्दर थी इसलिए चाँद किया है ।
पहले तो बस  परदे में थी मेरी मोहब्बत,
अब तो मेरी रातों को सर-ए-आम किया है।

_______________हर्ष महाजन

मैं फुर्सत से चाँद को देखना चाहता हूँ

मैं फुर्सत से चाँद को देखना चाहता हूँ
उसका हुस्न आँखों से चखना चाहता हूँ ।
बदली का चाँद ऐ खुदा तुझे ही मुबारक,
मैं घूँघट का चाँद दिल में रखना चाहता हूँ ।

____________हर्ष महाजन

Wednesday, March 14, 2012

लेने उनसे मैं चला आज की शाम उधार

..

लेने उनसे मैं चला आज की शाम उधार
रोम-रोम था डूब रहा  चारों और श्रृंगार ।
चारों और श्रृंगार, घटायें काली छायीं ,
रस में डूबा प्यार बदरिया खूब थी आयी,
कहे 'हर्ष' अब करो  दिलों के लेने देने,
ढल जायेगी प्रीत  पड़ेगा पतझड़ लेने ।

______________हर्ष महाजन

हम तो लायें है उन शहरों की तस्वीरें खींच कर

हम तो लायें है उन शहरों की तस्वीरें खींच कर
जहां खेत नहीं खलिहान नहीं हम रहें भीच कर ।

अब किस तरह इंसानों की ये सोच बदल गयी
इक ही घर में रहें अब मंजिलें खींच-खींच कर ।

_______________हर्ष महाजन

सास बहू से कह चली चल पीपल की छाँव

सास बहू से कह चली चल पीपल की छाँव
सर पे रख के घाघरी पटक चली फिर पाँव ।
पटक चली फिर पाँव मुखडिया हो गयी लाल,
बहू कहे तू निकल  मैं अबकि चली ससुराल।
कहे 'हर्ष' समुझाए, बहू को बात इक ख़ास ,
पता चलेगा दरद,  कि जब तू बनेगी सास ।

__________________हर्ष महाजन

Tuesday, March 13, 2012

खुदा से मैंने आज कुछ पल उधार मांगे हैं

खुदा से मैंने आज कुछ पल उधार मांगे हैं
कैसे कहूं कुछ पल नहीं कुछ खार मांगे हैं ।

मेरी अखियों से जो बह रहे थे चंद आंसू
उन आंसुओं की इन्तेहाई रफ़्तार मांगे हैं ।

किस तरह मैं आँखों से काजल जुदा करूँ
जाते-जाते उनसे ठोडा सा प्यार मांगे हैं ।

_____________हर्ष महाजन

वो तो अपनी धुन में विरह-गीत गाता रहा

वो तो अपनी धुन में विरह-गीत गाता रहा,
मेरी आँखों से धीरे-धीरे काजल जाता रहा ।

_______________हर्ष महाजन 

बावरा हुआ जाता है 'हर्ष' तेरी अखियों में इश्क देखकर

बावरा हुआ जाता है 'हर्ष' तेरी अखियों में इश्क देखकर,
मेरी उमीदों का मरकज़ तेरी आँखों का काजल ही तो है ।

______________________हर्ष महाजन


Markaz = Center = The middle point or the most important part

न करो क़ैद मेरी मोहब्बत को इस तरह सलाखों में

न करो क़ैद मेरी मोहब्बत को इस तरह सलाखों में,
मैं काजल नहीं हूँ जो सजा लेती हो अपनी आँखों में ।

_______________________हर्ष महाजन

ज़िन्दगी को काज़ल क्यूँ बना डाला 'हर्ष'

ज़िन्दगी को काज़ल क्यूँ बना डाला 'हर्ष'
काबिल-ए-बर्दाश्त न होगा उन आँखों को ।

__________________हर्ष महाजन

उस कम्बखत ने मेरी कविता पर अपना नाम लिख डाला

उस कम्बखत ने मेरी कविता पर अपना नाम लिख डाला
बड़ा कमज़र्फ निकला पेशानी पर अपना दाम लिख डाला ।
अहसासों को भी देखें तो यकीनन उस से मेल नहीं खाती
फिर भी दोस्तों की फेहरिस्त में खुद बदनाम लिख डाला ।

________________________हर्ष महाजन

मीलों सफ़र तै कर चूका हूँ इन कजरारी आँखों का

मीलों सफ़र तै कर चूका हूँ इन कजरारी आँखों का
कमाल-ए-हुस्न है या कोई जादू तुम्हारी आँखों का ।
मुद्दत से बहा हूँ इनमें पर साहिल नज़र नहीं आता
फिर भी करे इंतज़ार अब इन अदाकारी आँखों का ।

________________________हर्ष महाजन

Monday, March 12, 2012

तेरी अखियों से सारा नशा पी लेना चाहता हूँ

तेरी अखियों से सारा नशा पी लेना चाहता हूँ
कुछ अरसा खामोशी से जी लेना चाहता हूँ ।
कहते हैं लोग नशीली हैं तेरी कजरारी आँखें
नज़र न लगे 'हर्ष' होंठों को सी लेना चाहता हूँ ।

___________________हर्ष महाजन

मुझे मेरे ख़्वाबों की ताबीर बना लेने दो

मुझे मेरे  ख़्वाबों की ताबीर बना लेने दो
टूटे अहसासों की इक तस्वीर बना लेने दो ।
जो तस्वीर मैंने अखियों में संजो रखी थी,
उसे अपने दिल की तदबीर बना लेने दो ।

______________हर्ष महाजन

Saturday, March 10, 2012

काश मेरे ज़ख्मों को तेरी जुल्फों का साया होता

काश मेरे ज़ख्मों को तेरी जुल्फों का साया होता
मेरे इश्क की सलामती का कोई सरमाया होता ।
कोई तो होता जो मेरे तसव्वर मैं होता शामिल ,
फ़क़त मोहब्बत को मेरी दिल में समाया होता ।

_____________________हर्ष महाजन

मुझ से न ले मेरे कर्मों का हिसाब 'मौला मैं दोज़ख का ही वासी हूँ

किस तरह लचर हो जाता है सिलसिला जहां भी शक्ति का वितरण हो जाता है । हर किसी को चाहे वो इंसान हो जलचर हो, नभचर हो, निशाचर हो, थलचर हो या ये सृष्टि के विद्यमान स्रोतों में इस्तेमाल होने वाली शक्ति हो .....वहाँ कहीं न कहीं गलत इस्तेमाल होने की संभावना हो ही जाती है ...ऐसा कई बार प्रतीत होने भी लगता है .... उन शक्तियों को प्रभावित भी किया जा सकता है ...पूजा पाठ से या किसी ओउर माध्यम से......इसी पर मेरा ये शेर आधारित है मुलायजा फरमाइए ....
 
 
मुझ से न ले मेरे कर्मों का हिसाब 'मौला मैं दोज़ख का ही वासी हूँ
मैं जानता हूँ तेरी महफ़िल में तकदीर किस तरह लिखी जाती है ।

_____________________________हर्ष महाजन

जुल्फों में पडे ख़म का अब असर तो देखिये

जुल्फों में पडे ख़म का अब असर तो देखिये
मोहब्बत लिए खडा हूँ मिरी नज़र को देखिये ।
अब   देखता  जहां   मेरे  अंदाज़-ए-बयाँ को ,
ये  इल्तजा  है  उनसे  बस  डगर  को  देखिये ।

___________________हर्ष महाजन 

Friday, March 9, 2012

ज़ुल्फ़ बिखरेगी तो बरखा भी वहाँ बरसेगी

ज़ुल्फ़ बिखरेगी तो बरखा भी वहाँ बरसेगी
फिर सितारों की ये महफ़िल भी वहां पसरेगी ।

जिस तरह तेरी मोहब्बत का वो दम भरते हैं,
है यकीं मुझको ज़फायें भी वहाँ तरसेंगी ।

होंगे शायद तेरी चाहत में हज़ारों काबिल
पर न होगा मेरी तरह नज़र तो परखेगी ।

_______________हर्ष महाजन 

Thursday, March 8, 2012

दोहा - नौकर करे न चाकरी,



नौकर करे न चाकरी, मालिक करे सवाल,
माया कटी जब शाम कु,फिर वो करे बवाल ।

____________________हर्ष महाजन

होली मन पावन हुई, राधा हुई धमाल

होली मन पावन हुई, राधा हुई धमाल,
'हरषा' ने जब रंग दिया, चारों ओर गुलाल।

होली संग फागुन चढ़ा, रंग दिया मंच गुलाल,
शायरों की महफ़िल सजी, न कर कोई मलाल ।

________________हर्ष महाजन

राधा-स्वामी बिनती और प्रार्थना के शब्द

Radha Soami

राधा-स्वामी बिनती और प्रार्थना के शब्द
करूँ बिनती दाऊ कर जोरी
अर्ज़ सुनो राधास्वामी मोरी ।

सत-पुरुष  तुम सत्-गुरु दाता
सब जीवन के  पिता और माता
  दया धार  अपना  कर  लीजे
काल  जाल  से  न्यारा  कीजे
सतयुग  त्रेता  दयापर  बीता
काहू  न  जानी  सबद की  रीता
कलियुग  में  स्वामी  दया  विचारी
परगट  करके  सबद पुकारी 
जीव  काज  स्वामी  जग  में  आये
भाव-सागर  से  पार  लगाये 
तीन  छोर  चौथा  पद  दीन्हा
सत्तनाम  सतगुरु  गत  चीन्हा
जगमग  जोत  हॉट  उजियारा
गगन  सोत  पर  चन्द्र  निहारा
सेत  सिंघासन  छात्र  बिराजे ,
अनहद  शब्द  गैन धुन  गाजे
क्षर  अक्षर निअक्षर  पारा
बिनती  करे  जहां  दास  तुम्हारा
लोक  अलोक  पा 'उन  सुख धामा
चरण  सरन  दीजे  बिसरामा
लोक  अलोक  पा 'उन  सुख  धामा
चरण  सरन  दीजे  बिसरामा
करूँ  बिनती  दो'उ  कर जोरी
सोअमी दो'उ  कर  जोरी
अर्ज़  सुनो  राधास्वामी  मोरी 

दिल पे रंग उसका चढ़े , न चढ़े अब दूजा रंग

राधास्वामी जी


दिल पे रंग उसका चढ़े , न चढ़े अब दूजा रंग
होली है रंग प्यार का , बाकि रंग सब बदरंग ।
बाकि रंग सब बदरंग , ये मन के रंग अलग हैं
भर इन्हें अब ज़िन्द में, पड़े जो अलग थलग हैं ।
कहे 'हर्ष' तू समझ, ये रंगों की अब झिलमिल ,
न रंग दिल होली से ,खुदा के रंग से रंग दिल ।


_________________हर्ष महाजन

'हर्षा' सब के मन खड़ा काटे सबका ज़हर

'हर्षा' सब के मन खड़ा काटे सबका ज़हर 
 मनवा काले सींच कर शब् में भर दे सहर ।
शब् में भर दे सहर, करे अब दूर छलावे ,
दिल में हो कुछ बैर , सभी को दूर भगावे ,
कहे 'हर्ष' कविराय , खुदा से कर दो वर्षा ,
बैर करेगी हरण , तो खुश होवेगा हर्षा ।

हर्ष महाजन
०४/०३/२०१२

Sunday, March 4, 2012

मेरी ग़ज़लों में उनकी खबर देखिये

मेरी ग़ज़लों में उनकी खबर देखिये
फिर दुआओं का मेरी असर देखिये ।

_____________हर्ष महाजन

ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --५ .....दोहा क्या है ?

दोहा क्या है ?

कविता में कुछ व्याकरण सुधार ...

दोस्तों आज ये दो मिसरे मैंने एक दोहे के फलस्वरूप कहे ........
इन मिसरों को जब मैंने कहा..तो मन में मेरे "harash mahajan's six liners" की याद आ गयी ।
उनके बारे में मैं आपको बता दूं ...वो मेरे "harash mahajan's six liners" और कुछ नहीं :कुण्डलिया छंद हैं ।

कुण्डलिया छंद दोहा और रोला का मिलान ही समझिये ...

कुण्डलिया छंद में कुल छ: पद होते हैं पद का मतलब मिसरे ।इन्हें आप चरण भी कह सकते हैं । पहले दो चरण दोहे के और शेष चार चरण रोला छंद के होते हैं ।
इनके प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ होती हैं ।

अब आओ सबसे पहले कुण्डलिया छंद में हम "दोहे" की आवृति को समझें ।

दोहे में दो चरण होते हैं इसके प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ होती हैं ।
हर चरण दो भागों में बंटा होता है ...और उसका पहले और तीसरे भाग में १३-१३ मात्राएँ और दुसरे और चौथे भाग में ११-११ मात्राएँ होती हैं ।
जैसे मेरा ऊपर एक दोहा जो कहा गया है उसे ध्यान से देखिये ।

"हरषा"' सब के मन खड़ा,=१३ काटे सबका ज़हर=११ ---------=२४ मात्राएँ
मनवा काले सींच कर,=१३ शब् में भर दे सहर ।=११ ----------=२४ मात्राएँ

रोला छंद में चार चरण होते हैं और उसके प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ ही होती हैं ..
लेकिन दोहे के उलट उसके हर चरण के भाग में ...१३+११ की जगह ११+१३ मात्राओं का साथ होता है ...

कुण्डलिया छंद में पहले दो चरण दोहे के और बाकी चार चरण रोला छंद के होते हैं ।
उद्धरण वही पुराने दोहे से देते हैं >>>

देखिये ...

'हर्षा' सब के मन खड़ा काटे सबका ज़हर _________१३+११=24
मनवा काले सींच कर शब् में भर दे सहर ।_________१३+११=24

शब् में भर दे सहर, करे अब दूर छलावे ,_________११+१३=24
दिल में हो कुछ बैर , सभी को दूर भगावे ,_________११+१३=24
कहे 'हर्ष' कविराय , खुदा से कर दो वर्षा ,_________११+१३=24
बैर करेगी हरण , तो खुश होवेगा हर्षा ।_________११+१३=24




कुण्डलिया छंद में मात्राओं का जियादा महत्त्व है....
मात्राओं की गिनती कैसे करें-आइये देखते हैं
काव्य में छंद का अपना महत्व है। छंद रचना के लिए मात्राओं को समझना एवं मात्राओं की गिनती करने का पूर्ण रूप से पता होना अनिवार्य है। यह तो सभी को पता है कि वर्णों को स्वर एवं व्यंजन दो भागों में बांटा गया है। स्वरों की मात्राओं की गिनती करने का नियम इस प्रकार  है-
, , की मात्राएँ छोटी या लघु (।) मानी गयी हैं।
, , , , ऐ ओ और औ की मात्राएँ बाडी या दीर्घ (S) मानी गयी है।
क से लेकर ज्ञ तक व्यंजनों को लघु मानते हुए इनकी मात्रा एक (।) मानी गयी है।
इ एवं उ की मात्रा लगने पर भी इनकी मात्रा
लघु (1) ही रहती है,
परन्तु इन व्यंजनों पर आ
, , , , , , औ की मात्राएँ लगने पर इनकी मात्रा दीर्घ (S) हो जाती है।
अनुस्वार
(.) तथा स्वरहीन व्यंजन अर्थात आधे व्यंजन की आधी मात्रा मानी जाती है।वैसे तो आधी मात्रा की गणना नहीं की जाती परन्तु यदि अनुस्वार (.) अ, , उ अथवा किसी व्यंजन के ऊपर प्रयोग किया जाता है तो मात्राओं की गिनती करते समय दीर्घ मात्रा मानी जाती है किन्तु स्वरों की मात्रा का प्रयोग होने पर अनुस्वार (.) की मात्रा की कोई गिनती नहीं की जाती।
स्वरहीन
व्यंजन से पहले लघु स्वर या लघुमात्रिक व्यंजन का प्रयोग होने पर स्वरहीन व्यंजन से पूर्व वाले अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती है। उदाहरण के लिए कंस,अंश, हंस, वंश, कं,में अं हं, वं, सभी की दो मात्राए गिनी जायेंगी।

अच्छा
, रम्भा, कुत्ता, दिल्ली इत्यादि की मात्राओं की गिनती करते समय अ, , क तथा दि की दो मात्राएँ गिनी जाएँगी, किसी भी स्तिथि में च्छा, म्भा, त्ता और ल्ली की तीन मात्राये नहीं गिनी जाएँगी। इसी प्रकार त्याग, म्लान, प्राण आदि शब्दों में त्या, म्ला, प्रा में स्वरहीन व्यंजन होने के कारण इनकी मात्राएँ दो ही मानी जायेंगी।

अनुनासिक की मात्रा की कोई गिनती नहीं की जाती.जैसे-

हँस, विहँस, हँसना, आँख, पाँखी, चाँदी आदि शब्दों में अनुनासिक का प्रयोग होने के कारण इनकी कोई
मात्रा नहीं मानी जाती।

अनुनासिक
के लिए सामान्यतः चन्द्र -बिंदु का प्रयोग किया जाता है.जैसे - साँस, किन्तु ऊपर की मात्रा वाले शब्दों में केवल बिंदु का प्रयोग किया जाता है, जिसे भ्रमवश कई पाठक अनुस्वार समझ लेते है.जैसे- पिंजरा, नींद, तोंद आदि शब्दों में अनुस्वार ( . ) नहीं बल्कि अनुनासिक का प्रयोग है।

दोस्तों ये लेख पूर्णतया मेरा नहीं है इसमें चर्चाओं से अर्जित और बहुत से विद्वानों का योग है और ये विद्या यहाँ पर अपनी इन्टरनेट के माध्यम से तथा अपनी विद्या के साथ सम्मलित कर समझाने का पर्यास भर है.....अगर किसी को लाभ मिले मुझे बहुत खुशी प्राप्त होगी...

उम्मीद है मैं इसे समझाने में सफल हुआ हूँ ।

(दोस्तों मैं अब भी आव्हान करना चाहता हूँ सभी इस क्षेत्र विद्वानों से के आओ इस विधा को हम सब मिल कर आगे बढाए। अपनी समझ को एक दुसरे के संग मिल कर वितरित करें ।मैं एक कम इल्मी इंसान जितना जानता है उसे शेयर कने की कोशिश कर रहा हूँ )

नोट:--
एक बार फिर मैं याद दिलाना चाहता हूँ ..कृपया कविता को मज़ाक न बनने दें कोई दो चार मिसरे इधर उधर कह लेने या लिखने से या उसे छोटे छोटे भागों में बाटने से नहीं हो जाती ..इसके लिए कृपया उसके व्याकरण का ख्याल ज़रूर रखने की कोशिश ज़रूर करें ...और अगर ऐसा नहीं कर सकते तो ...कम से कम ख्याल रखने की कोशिश ज़रूर करें .....

हर्ष महाजन
______________
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1.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --१
1.a
शिल्प-ज्ञान -1 a
2.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --2 ........नज़्म और ग़ज़ल
3.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --3
4.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --4 ----कविता का श्रृंगार
6.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --6
7.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --7
8.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --8
9.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 9
10.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 10
11.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 11
12.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 12

ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --4 ----कविता का श्रृंगार

कविता का श्रृंगार--------- एक ज़रूरी हथियार

१.कविता कहानी का रूप नहीं होनी चाहिए --छोटी और अहसासों से भरपूर होनी चाहिए ।
२. कविता की शुरुआत ऐसी होनी चाहिए की पढने वाला बंद सा जाये ।
३. कविता का उन्वान आकर्षित होना चाहिए जो कविता को पढने के लिए उकसा दे।
४.अपने भाव/अहसास जितने कम शब्दों में हों कविता का स्तर उतना बड जाता है ।
५. लम्बी कविता एक कमज़ोर कविताओं में आती है ..जब तक ज़रूरी न हो उसको लम्बा नहीं करना चाहिए ।
अपनी बात कम शब्दों में सुशोबित कानी चाहिए ।

६.jahaaN तक हो सके छंद /अलंकार प्रयोग करने चाहिए ।
७. कहानी नुमा कविता कभी भी अवार्ड के लायक नहीं रहती ।
८. कम शब्दों में जियादा गहरी बात ।
९. कविता सरल होनी चाहिए ...जियादा मुश्कुइल शब्द इस्तेमाल करने से कविता का सत समाप्त हो जाता है ....
१०. कविता वही सरल होती है...जो जिस भाव में कवी ने कही हो और वो अहसास उसी तरह पढने वालों तक पहुंचे ।...ऐसा न हो आप कहना कुछ चाहते हों और पढने वाला कोई और ही मतलब निकाल कर पढ़े ।
११. आखिरी और ज़रूरी बात कवी मन जब भी कविता पेश करता है तो अपने गध्य को पद्य की तरह पेश कर के उसे कविता का रूप देना चाहता है....पर ऐसा होता नहीं है .....ऐसी कवितायें वो होती हैं ...जो रदीफ़ युक्त होती हैं ....ओउर उनके मिसरे छोटे करते वक़्त ये ध्यान रखना चाहिए के पूंछ ऐसी जगह होना चाहिए जैसे आप मंच पर प्रस्तुत कर रहे हैं ।

शुक्रिया

हर्ष महाजन
________________
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1.
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1.a
शिल्प-ज्ञान -1 a
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ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --3
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ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --५ .....दोहा क्या है ?
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ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --6
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ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --7
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ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --8
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ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 9
10.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 10
11.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 11
12.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 12