Tuesday, March 27, 2012

पतनी अपनी जात की, एकहू तरकश बाण

पतनी अपनी जात की, एकहू तरकश बाण
मियाँ जी के अगल-बगल, तनी जु तीर-कमान ।
तनी जु तीर-कमान, यु सौतन कैसे आवे
पति होए बेइमान, तो घर कु सर पे उठावे ।
कहें 'हर्ष' कविराय , घरां की खाओ चटनी
सौतन की न सोच, जब हो घर में जु पतनी ।


____________________हर्ष महाजन

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