Monday, March 19, 2012

एक व्यंग --मैं इतना गिरा हूँ

एक और व्यंग आपकी नज़र .....अब इस व्यंग को आप कहाँ तक समझ पाते हैं मालूम नहीं ?
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मैं पिछले जन्म में
अपने गोरे रंग से
इतना गिरा था (यथार्थ में )
कि गिरावट कि सीमा
टूट चुकी थी ।
और अबलाओं कि किस्मत
रूठ चुकी थी ।
क्योंकि मैं
मन का काला था ।

फिर वक़्त ने

एक अजीब सी करवट ली
इस जन्म में
मैं अपने काले रंग में
इतना उठा हूँ (कल्पना में )
कि पवित्रता
पीछे छूट चुकी है
दिल का साफ़ हूँ
मगर क्या करूँ!!!!
मेरे पास कोई आता नहीं
खुद उनकी ओर
खिचा चला जाता हूँ
हे अबला !
तेरी बस यही कहानी है
सच अब मेरी जबानी है ।

हर्ष महाजन

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