Monday, April 30, 2012

कोई तो बता दो मुझको रास्ता मैखाने का

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कोई तो बता दो मुझको रास्ता मैखाने का
कहीं भूल न जाऊं रंग-ए-नशा पैमाने का ।

______________हर्ष महाजन ।

कितने तहजीब से लबों पर जाम चलने लगा

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कितने तहजीब से लबों पर जाम चलने लगा
हुस्न ओउर शबाब अब संग संग जमने लगा ।
कहते थे शोला बदन तो थे वो रंगीं मिजाज़ भी
महसूस हुआ समंदर में सैलाब उबलने लगा ।

___________________हर्ष महाजन ।

Sunday, April 29, 2012

न ब्यान कर कोई अफसाना साए का यूँ ही

न ब्यान कर कोई अफसाना साए का यूँ ही
ये मुझे दीये की लोंऊ में भी डंसा करता है ।

_____________________हर्ष महाजन ।

ये जुबां ही है जो हमें जोड़ा करती है

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ये जुबां ही है जो हमें जोड़ा करती है ,
खुदा करे इन सायों को भी जुबां दे दे ।

__________________हर्ष महाजन

सायों का रंग मुझे ब्यान करना नहीं आता

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सायों का रंग मुझे ब्यान करना नहीं आता
काला कहूं तो वो अहसासों की बात करते हैं ।

___________________हर्ष महाजन ।

इन सायों का तजुर्बा कोई क्या जाने

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इन सायों का तजुर्बा कोई क्या जाने
कोई हमसा हो कब्र में तो कोई जाने ।

_______________हर्ष महाजन

तेरी सायों में इस दर्ज़ा हो गया है यकीन

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तेरी सायों में इस दर्ज़ा हो गया है यकीन
कोई जगह नहीं दिल में अगर-मगर के लिए ।

___हर्ष महाजन ।

तुमने हमसायों को अपनी दहलीज़ पर जो आने दिया

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तुमने हमसायों को अपनी दहलीज़ पर जो आने दिया
हमें तस्दीक दे दी तुमने अपने आपको हमें पाने दिया ।

__________________हर्ष महाजन

मुझे पाने वाले बहूत हैं पर मैं अब ज़िंदा नहीं हूँ

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मुझे पाने वाले बहूत हैं पर मैं अब ज़िंदा नहीं हूँ
खुदा करे मेरे साए भी अब मेरी तरह जिंदा न रहें ।

_______________________हर्ष महाजन

हमें सायों पे पाँव रखना नहीं आता 'हर्ष'

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हमें सायों पे पाँव रखना नहीं आता 'हर्ष'
गर ये प्यार है तो प्यार करना नहीं आता ।

________________हर्ष महाजन ।

खुद खुदा भी साए से अलग नहीं है

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खुद खुदा भी साए से अलग नहीं है
पर हर साया यहाँ पर खुदा नहीं है ।

______हर्ष महाजन ।

Saturday, April 28, 2012

हर मोड़ पर मिली हैं गम की परछाइयाँ तुझे ऐ 'हर्ष'

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हर मोड़ पर मिली हैं गम की परछाइयाँ तुझे ऐ   'हर्ष'
ज़िन्दगी से समझौता करने की आदत सी हो गयी है ।

_______________________हर्ष महाजन ।

Friday, April 27, 2012

नगमें लिखने में मेरा अब विश्वास खूब जागा है

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नगमें लिखने में मेरा अब विश्वास खूब जागा है
फिर भी मेरा पुराना दोस्त इन्हें सुन क्यूँ भागा है ।
हर मिसरे पर खूब वाह-वाह तो किया करता था
मगर मुझे तो उम्मीद थी कहेगा सोने में सुहागा है ।

_______________हर्ष महाजन ।

धर्म-राज ने मुझे अपने शेरों में तत्काल पुकारा है

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धर्म-राज ने मुझे अपने शेरों में तत्काल पुकारा है
सब काम छोड़ उनसे मिलना अब सवाल हमारा है ।
क्यूँ इस तरह सृष्टि में बे-परवाह विचर रहे हो तुम ?
बही खाते का आडिट है ले जाओ कंकाल तुम्हारा है ।

_______________हर्ष महाजन ।

किस तरह मातम मनाऊँ मैं तेरे गुजरने का 'हर्ष'

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किस तरह मातम मनाऊँ मैं तेरे गुजरने का 'हर्ष'
तेरे बिना तो मेरी आँहें भी मेरा साथ छोड़ देती हैं ।

तुम तो गए मगर कांटे  यहीं हैं दास्ताँ सुनाने को,
कब्र पे चढ़ा के फूल वो मुझे बेवफाई को मोड़ देती है ।

_______________हर्ष महाजन ।

Thursday, April 26, 2012

मुझको हक है के तेरे प्यार में दीवाना रहूँ ...

मुझको हक है के तेरे प्यार में दीवाना रहूँ ...
चाहे जितने भी सितम दो मगर परवाना रहूँ ।

____________________हर्ष महाजन

खौफ इस बात का मुझको के ख़ुशी गम न बने

खौफ इस बात का मुझको के ख़ुशी गम न बने
जो मोहब्बत है मिली, दोस्त से दुश्मन न बने ।

____________________हर्ष महाजन

हर ज़ुल्म को हमने तकदीर का नाम दिया है 'हर्ष'

हर ज़ुल्म को हमने तकदीर का नाम दिया है 'हर्ष'
पर हर ज़ख्म को, किसी के दिल में होने का हक है ।

___________________हर्ष महाजन ।

Tuesday, April 24, 2012

मुझे अब तेरी बचैनी पर भी रश्क होने लगा है 'हर्ष'

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मुझे अब तेरी बचैनी पर भी रश्क होने लगा है 'हर्ष'
क्या गज़ब की बला होगी जिसने तुझे घम्खार किया ।

________________________हर्ष महाजन ।

न पत्थर ही हुए हम क्यूँ हमें रोना नहीं आता

न पत्थर ही हुए हम क्यूँ हमें रोना नहीं आता
तू टूट कर बिखरे ऐसा मंज़र खोना नहीं आता ।

_______________हर्ष महाजन ।

कितनी बद्दुआयें संजो कर रक्खी हैं मैंने तेरे लिए


कितनी बद्दुआयें संजो कर रक्खी हैं मैंने तेरे लिए
तू अपनी हसरत-ए-ज़िन्दगी से लौटे तो तुझे दे दूं ।

_____________________हर्ष महाजन

शोला-ए-जाँ सी तड़प मेरी तू बुझा सके न बड़ा सके


शोला-ए-जाँ सी तड़प मेरी तू बुझा सके न बड़ा सके
अब खुदा से है इल्तजा मुझे जीने की और सजा न दे ।

__________________________हर्ष महाजन ।

छलका दूं अपनी आँख के मैं अश्क तेरी आँख से


छलका दूं अपनी आँख के मैं अश्क तेरी आँख से
जा बेवफा अपनी कलम में ऐसा हुनर रखता हूँ मैं ।

___________________हर्ष महाजन ।

किन-किन बद्दुआओं की बात करती हो ऐ नाजनीन

किन-किन बद्दुआओं की बात करती हो ऐ नाजनीन
मैं तो वक़्त का गुनाहगार हूँ जो मैंने तुझ संग बिताया ।

____________________________हर्ष महाजन ।

Monday, April 23, 2012

रौशनी बद्दूआओं की उस बेवफा को इस तरह मिले


रौशनी बद्दूआओं की उस बेवफा को इस तरह मिले
हर शाक पर तवायफों को सितम जिस तरह मिले ।

____________________हर्ष महाजन ।

गर नाम दे दिया है तूने मेरी मोहब्बत को शौक का

गर नाम दे दिया है तूने मेरी मोहब्बत को शौक का
क्या होगा मेरी बद्दुआओ का जब कहर बन टूटेंगी ।

____________________हर्ष महाजन ।

तू कहती तो इक ताजमहल और खड़ा हो जाता यहाँ-वहाँ

तू कहती तो इक ताजमहल और खड़ा हो जाता यहाँ-वहाँ
खिजाँ बनी तू गुलशन की बने कब्रिस्तां चले तू जहां-जहां ।

__________________________हर्ष महाजन ।

गर तू कभी मेरा दिल भी जहरीली तहरीरों से तोड़ दे

गर तू कभी मेरा दिल भी जहरीली तहरीरों से तोड़ दे
तो उसके टुकड़े भी तेरी दहलीज़ पर कहर बरपायेंगे ।

___________________हर्ष महाजन ।

मैं तो कब्र में पीता हूँ , तेरी राह में जीता हूँ

मैं तो कब्र में पीता हूँ , तेरी राह में जीता हूँ ,
बेवफा अब गम न तू कर, कफन मैं सीता हूँ ।

______________हर्ष महाजन ।

मुझे दर्द के साए में अब जीने की आदत है

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मुझे दर्द के साए में अब जीने की आदत है
आप भी ऐसा ही कहेंगे समझूंगा इबादत है ।

___________________हर्ष महाजन

मुर्दे खुद अब कफन ओड़ कर सोने लगे हैं

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मुर्दे खुद अब कफन ओड़ कर सोने लगे हैं
इसी लिए हम कफन के बीज बोने लगे हैं ।

_______________हर्ष महाजन ।

अर्थी जब मेरी निकलेगी यारो इक जाम उठा लेना

अर्थी जब मेरी निकलेगी यारो इक जाम उठा लेना
घर उसका राह में आ जाए थोडा सा पर्दा उठा देना ।

___________________हर्ष महाजन ।

ये दर्द-ए-जुदाई की रातें नागों की तरह फंकारती हैं

ये दर्द-ए-जुदाई की रातें नागों की तरह फंकारती हैं
जब ठेका होवे बंद तो खाली बोतल ही पुचकारती है ।

_______________________हर्ष  महाजन ।

जब जाम चलेंगे होटों से पलकों को खबरदार कर देंगे

जब जाम चलेंगे होटों से पलकों को खबरदार कर देंगे
रुखसार पे लब काबिज़ होंगे दिल को खबरदार कर देंगे ।

___________________________हर्ष महाजन ।

कौन सुनता है मेरी शराब में डूबी हुई ये मयकश ग़ज़लें

कौन सुनता है मेरी शराब में डूबी हुई ये मयकश ग़ज़लें
दिल के टूटे हुए साज़ की तारों की फ़रियाद है न ग़ज़लें ।

___________________हर्ष महाजन ।

शाम चलेंगे जाम और शब् भर ज़श्न चलाया जाएगा

शाम चलेंगे जाम और शब् भर ज़श्न चलाया जाएगा
मसला मगर अब ये है कि दिन कैसे गुज़ारा जाएगा ।

__________________हर्ष महाजन ।

जुल्फों से अगर है शिकायत बात साकी से पूछो ज़रा तुम

जुल्फों से अगर है शिकायत बात साकी से पूछो ज़रा तुम
जाम बोतल में था और जुल्फें अब उसी में नहायी हुई हैं ।

_______________________हर्ष  महाजन ।

हमको है बनाया खुदा ने हम मय को बनाये हुए हैं


हमको है बनाया खुदा ने हम मय को बनाये हुए हैं
औरत ने बनाई खुदाई ओ हम नशे को बनाए हुए हैं ।

________________________हर्ष महाजन ।

Sunday, April 22, 2012

नफरत जो करे मुझ से कोई, नफरत की शाम बदलता हूँ

नफरत जो करे मुझ से कोई, नफरत की शाम बदलता हूँ
जब शाम ढली हो जुल्फों की, शबनम से जाम बदलता हूँ ।

_______________________हर्ष महाजन ।

Aadtan Main Pee Leta Hoon, Iradtan Main Pee Leta Hoon,

Aadtan Main Pee Leta Hoon, Iradtan Main Pee Leta Hoon,
Ruthhe Gar Khushiaan Mujhse, Ziadtan Main Pee Leta Hoon.

Jab Tak Na Mile Koi Saaki, Bin Saaki Hi Pee Leta Hoon,
Paimane Sab Jab Hon Khali,Ashqon Se Bhar Pee Leta Hoon.

Maikhane Se Aati Sada, Sun Ke Sada Pee Leta Hoon,
Sabki Akhiyon Ko Chhal Ker, Chupke Se Main Pee Leta Hoon.

Jab Raat Ho Kat-Ti Aankhon Main,Toh Gham Me Main Pee Leta Hoon,
Chhaye Ghata Zulfon Ki Kabhie, Toh Be-Mousam Main Pee Leta Hoon.

Nafrat Jo Kare Koi Mujhse, Nafrat Ko Hi Pee Leta Hoon,
Maikhane Main Jab Aa Hi Gaye,Toh Zeher Mile Pee Leta Hoon.

Harash Mahajan

1st July 2005
at
Yoindia.com
http://www.yoindia.com/shayariadab/shayeri-for-dard-e-bewafai/wafaa-ki-baatein-t9603.0.html
and
2nd Oct 2006
at
http://justju.18.forumer.com/index.php?s=1a606893e73d6fbd472119cf4cc05a8b&showtopic=5136

ये हुस्न किस कदर उमड़ रहा है तेरी अदाओं में

ये हुस्न किस कदर उमड़ रहा है तेरी अदाओं में 
मैं तो इक उम्र से कसीदे पढ़ रहा हूँ तेरी चाह में ।

__________________हर्ष महाजन ।

तुझे किस नज़र से देखूं तुझे किस फिजां में देखूं

तुझे किस नज़र से देखूं तुझे किस फिजां में देखूं
मेरे रोम-रोम में धंसता तेरा हुस्न जवाँ मैं देखूं ।

____________________हर्ष महाजन ।

ये मेरे शेर नहीं ये मेरी तलब है तेरे हुस्न की 'हर्ष'

ये मेरे शेर नहीं ये मेरी तलब है तेरे हुस्न की 'हर्ष'
तेरी शबनमी आँखें देख मेरी कलम चला करती है ।

________________________हर्ष महाजन ।

क्या ज़माल-ए-हुस्न तेरा क्या जवाब-ए-गरूर तेरा

क्या ज़माल-ए-हुस्न तेरा क्या जवाब-ए-गरूर तेरा
तू अब धडकनों में मेरी , मैं मिसाल-ए-फितूर तेरा ।

________________________हर्ष महाजन ।

शाक-ए-हुस्न पे रुक कर मैं बुलंदियों से गुज़रा

शाक-ए-हुस्न पे रुक कर मैं बुलंदियों से गुज़रा
मैं नफस-नफस से गुज़रा, आफताब से गुज़रा ।

__________________हर्ष महाजन ।

तेरे हुस्न की वो खुशबू ख्यालों में ले के गुज़रा

तेरे हुस्न की वो खुशबू ख्यालों में ले के गुज़रा
हैं चमन में तू ही हर सूँ मैं कली-कली से गुज़रा ।

____________________हर्ष महाजन

हुस्न-ए-यार से जुदाई कौन चाहे

हुस्न-ए-यार से जुदाई कौन चाहे
हया छोड़ के भी जुदाई कौन चाहे ।

_____________हर्ष महाजन ।

जब हुआ दीदार-ए-हुस्न तेरा बे-बाक मोहब्बत मैं कर बैठा

जब हुआ दीदार-ए-हुस्न तेरा बे-बाक मोहब्बत मैं कर बैठा
तेरी शरबती आँखों में जो नशा लुत्फ़-ए-जन्नत मैं कर बैठा ।

_____________________हर्ष महाजन ।

मेरी रग-रग में तेरा हुस्न बसा मेरी ग़ज़ल का तड़का जगह-जगह

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मेरी रग-रग में तेरा हुस्न बसा मेरी ग़ज़ल का तड़का जगह-जगह
कायनात भी रख दूं सदके तेरे , तेरे हुस्न का चर्चा जगह-जगह ।

__________________________________हर्ष महाजन ।

Saturday, April 21, 2012

कागजों की भीड़ में जलवा-ए-हुस्न कहाँ खो गया

कागजों की भीड़ में जलवा-ए-हुस्न कहाँ खो गया
जो चाह रहा हूँ कहना अब जाने कहाँ वो सो गया ।

________________________हर्ष महाजन ।

मोहब्बत की आड़ में "हर्ष', मैं जाम-ए-हुस्न भरता रहा

मोहब्बत की आड़ में "हर्ष', मैं जाम-ए-हुस्न भरता रहा
तह-ए-दिल से प्यार करता रहा वो दिल पे वार करता रहा ।

_________________________हर्ष महाजन ।

बे-मिसाल है हुस्न के वो मेरे दिल में अब कहीं उतर गया

बे-मिसाल है हुस्न के वो मेरे दिल में अब कहीं उतर गया
आँखों को नम कर नूर बन ता-उम्र लिए मेरी सिमट गया ।

_________________________हर्ष महाजन ।

आस्तीन के सांप यहाँ अब हुस्न अदा को क्या जाने


आस्तीन के सांप यहाँ अब हुस्न अदा को क्या जाने
जो असल मोहब्बत कर बैठा वो हुस्न फ़िदा ही अदा जाने ।

_____________________हर्ष महाजन ।

जुल्फें अब सर-ए-आम संवारा किये हैं वो


जुल्फें अब सर-ए-आम संवारा किये हैं वो
बे-मौत हमको हुस्न से यूँ मारा किये हैं वो ।

________________हर्ष महाजन ।

कमाल-ए-हुस्न तो देखो खुदा तक हैरान हुआ है


कमाल-ए-हुस्न तो देखो खुदा तक हैरान हुआ है
सतयुग त्रेता युग में वो खुद तक परेशान हुआ है ।

__________________हर्ष महाजन ।
..

वो आयें मेरे ख़्वाबों में , मेरी सांस-सांस में गुज़रे
दरिया-ए-लुत्फ़ निकले जब हुस्न-ए-यार से गुज़रे ।

_______________________हर्ष महाजन ।

हो के जो अपने इस गुनाह से पशेमान गया

हो के जो अपने इस गुनाह से पशेमान गया
हुस्न की तारीफ में ऐ खुदा वो इंसान गया ।

____________________हर्ष महाजन ।

Friday, April 20, 2012

क्या दिन थे लुत्फ़-ए-यार में हम जाम उतारा करते थे

क्या दिन थे लुत्फ़-ए-यार में हम जाम उतारा करते थे
क्या दिन हैं इंतज़ार-ए-यार में अब शाम गुज़ारा करते हैं ।
______________________हर्ष महाजन ।

बड़ी ही अजीब है ये दुनिया तवायफों की तरह



बड़ी ही अजीब है ये दुनिया तवायफों की तरह
वफायें बदलती रहती है वो इंतज़ार-ए-यार में ।

__________________हर्ष महाजन

तुम हंस रहे हो मुझे यूँ बे-हाल देख कर

तुम हंस रहे हो मुझे यूँ बे-हाल देख कर
मगर मैं मसरूफ हूँ इतेज़ार-ए-यार में ।

_____________हर्ष महाजन

मुझ से बिछड़कर बता किधर जायेगी



मुझ से बिछड़कर बता किधर जायेगी
इंतज़ार-ए-यार में खुद ही मर जायेगी ।

_______________हर्ष महाजन

तेरे दोस्तों में हूँ या फिर तेरे दुश्मनों में हूँ


तेरे दोस्तों में हूँ या फिर तेरे दुश्मनों में हूँ
इंतज़ार-ए-यार में हूँ मगर उलझनों में हूँ ।

_______________हर्ष महाजन

चेहरे पे मेरे आज ये दर्द इंतज़ार-ए-यार का है


चेहरे पे मेरे आज ये दर्द इंतज़ार-ए-यार का है
समझ तो लेना प्यार का है मगर बदलते यार का है ।

_________________________हर्ष महाजन

इंतज़ार-ए-यार में ये चश्म यूँ ही बहते रहे

इंतज़ार-ए-यार में ये चश्म यूँ ही बहते रहे
वो बे-वफ़ा कहते रहे हम बे-वज़ह सहते रहे ।

__________________हर्ष महाजन ।

उसके दिल का गुलिस्ताँ मेरे ही प्यार में रोशन रहा ता उम्र

उसके दिल का गुलिस्ताँ मेरे ही प्यार में रोशन रहा ता उम्र
मगर जाने क्यूँ तड़प रहा हूँ मैं अब यूँ इंतज़ार-ए-यार में ।

____________________________हर्ष महाजन

किस कदर लुटता रहा इक बे-वफ़ा के प्यार में


किस कदर लुटता रहा इक बे-वफ़ा के प्यार में
अब कितनी लाशें बिखरेंगी इंतज़ार-ए-यार में ।

__________________हर्ष महाजन ।

इंतज़ार-ए-यार अब ज़ुल्मत के बीज बोता रहा


इंतज़ार-ए-यार अब ज़ुल्मत के बीज बोता रहा
मैं भी अम्न खोता रहा वो भी बे-वफ़ा होता रहा ।

_________________हर्ष महाजन ।

इंतज़ार-ए-यार में हम चश्म-ए-तर होते रहे

इंतज़ार-ए-यार में हम चश्म-ए-तर होते रहे
वफ़ा कहीं लुटती रही जाम कहीं चलते रहे ।

________________हर्ष महाजन ।

इंतज़ार-ए-यार में हम, मोहब्बत भी तन्हा कर चले

इंतज़ार-ए-यार में हम, मोहब्बत भी तन्हा कर चले
तन तो तन्हा था मेरा अब दिल भी तन्हा कर चले ।

______________________हर्ष महाजन ।

कितनी शमशीरें निकली दर्द को शांत करने में

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कितनी शमशीरें निकली दर्द को शांत करने में
कितनी लाशें बिखरी इस भारत से पाक बनने में
विश्वास था संभालेगा इसे मज़बूत सरदार कोई
पर पेंसठ साल खो चुके हैं अभी इसके बनने में ।

______________________हर्ष महाजन

Thursday, April 19, 2012

किसका हुनर-ओ-इल्म मौत को जीत पाया है अब तलक

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किसका हुनर-ओ-इल्म मौत को जीत पाया है अब तलक
खुदा भी अब हिसाब कर्मों का करता आया है अब तलक
तमाम कायनात उलझी है इसके रहस्य को सुलझाने में,
पर  दस्ता खुदा का कामयाब नहीं हो पाया है अब तलक ।

____________________हर्ष महाजन

खता यही कि बस तुझको हम चाहने लगे

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खता यही कि बस तुझको हम चाहने लगे
तकदीर दोजख़ में कि तुम्हे ये बहाने लगे
ता उम्र गंवायी तुमने तरके मोहब्बत पर 
अब पाँव कब्र में पहुंचे तों हम दीवाने लगे ?

_______________हर्ष महाजन

Wednesday, April 18, 2012

किस तरह छायी हो "मेरे दुश्मनों" में तुम

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किस तरह छायी हो "मेरे दुश्मनों" में तुम
बताओ सज्जनों में हो के दुश्मनों में तुम
किस तरह कांटे से काँटा निकाल पाऊँगा मैं
सज्जनों में ढूंढता हूँ मैं और दुश्मनों में तुम ।

_______________हर्ष महाजन ।

देखो तो !मेरे दुश्मन ने मुझसे कितना अदभुत खेल खेला है

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देखो तो !मेरे दुश्मन ने मुझसे कितना अदभुत खेल खेला है,
मेरी लुत्फ़-ए-ज़िन्दगी को किस तरह इस हिज्र में धकेला है ।
दर्ज किया मेरा राज़-ए-निहां मेरी लखत-ए-जिगर से इस तरह 
कांटे से काँटा निकाल मुझे जताया कि तू किस तरह अकेला है ।

_______________________हर्ष महाजन ।


राज़-ए-निहां=छुपा हुआ राज़

चुनिन्दा लोगों में, जीतना, कला बिना हो नहीं सकता

चुनिन्दा लोगों में, जीतना, कला बिना हो नहीं सकता,
तप्सिरों की धार बिना कोई शेर नगीना हो नहीं सकता ।
'हर्ष' इक उम्र से यही ब्यान करता आया है महफ़िलों में,
काफिर सनम पे जहाँ भी लुटा दो सफीना हो नहीं सकता ।

____________________________हर्ष महाजन ।

Tuesday, April 17, 2012

तेरे गुलिस्तान में अब "मेरे दुश्मन " बहूत हैं 'हर्ष'

तेरे गुलिस्तान में अब "मेरे दुश्मन " बहूत हैं 'हर्ष'
"दुनिया का क्या" तुम हो तो बस निभा रहा हूँ मैं ।

__________________हर्ष महाजन

किस तरह रकीबों को चाहने लगी है वो

किस तरह रकीबों को चाहने लगी है वो,
बे-बात ही आंसुओं को बहाने लगी है वो,
अब कांटे से कांटा निकालना है मुझको,
मेरे दुश्मन संग वफ़ा निभाने लगी है वो ।

___________हर्ष महाजन ।

वो आये मेरी कब्र पर, जाने कहाँ-कहाँ से गुज़रे

वो आये मेरी कब्र पर, जाने कहाँ-कहाँ से गुज़रे
दरिया-ए-लहू का निकला वो जहां-जहां से गुज़रे ।

_________________________हर्ष महाजन

"वो आये मेरी कब्र पर" राज-ए-यार इस तरह कर गए

"वो आये मेरी कब्र पर" राज-ए-यार इस तरह कर गए
तन तो तनहा था ही मेरा अब दिल भी तनहा कर गए ।

______________________हर्ष महाजन ।

अब उसका लबो-लहजा किसी तरह भी नहीं भाता मुझे

अब उसका लबो-लहजा किसी तरह भी नहीं भाता मुझे
फिर किस तरह से मैं उसे कहूं कि "वो आये मेरी कब्र पे"
_______________________हर्ष महाजन ।

उनकी मोहब्बत में हम इक उम्र से जुल्फें संवारते रहे हैं 'हर्ष'

उनकी मोहब्बत में हम इक उम्र से जुल्फें संवारते रहे हैं 'हर्ष'
मगर कितना अरसा वो आवाज़ देंगे ''बर्तन कलई करा लो" ।

___________________________हर्ष महाजन ।

ज़िन्दगी के हर मोड़ पर गम की परछाईयाँ ही मिली मुझे

ज़िन्दगी के हर मोड़ पर गम की परछाईयाँ ही मिली मुझे
समझौता करने की बस अब 'हर्ष' आदत सी हो गयी है ।


________________________हर्ष महाजन

जिस ज़माने की वो बात करते हैं उसका चलन अब ज़ारी नहीं है

जिस ज़माने की वो बात करते हैं उसका चलन अब ज़ारी नहीं है
"बर्तन कलई करा लो" ऐसा कथन तो है पर अब चिंगारी नहीं है |

___________________________हर्ष महाजन ।

वो आये जब मेरी कब्र पर बे-वज़ह रुलाने के लिए

वो आये जब मेरी कब्र पर बे-वज़ह रुलाने के लिए
बे-बाक उठ मैं चल पड़ा उसे बे-वफ़ा बताने के लिए ।
अब होश फाख्ता देख के मैं चुपचाप कब्र में लेट गया,
कुछ पल बाद इक शोर हुआ उसे पागल जताने के लिए ।
_______________________हर्ष महाजन ।

Friday, April 13, 2012

ऐसा किला, पहाड़ न नदिया, ऐसा कोई अब सहरा नहीं

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ऐसा किला, पहाड़ न नदिया, ऐसा कोई अब सहरा नहीं
जहां हिंद का परचम अब तक तीन रंग में लहरा नहीं ।

कली-कली हर ड़ाल  पर लिखा 'बोस' 'भगत',आज़ाद यहाँ,
माता गंगा, जमुना विचरित, अजूबा  विश्व का ताज यहाँ ।
भारत देश आज़ाद है जब से कोई दुश्मन यहाँ ठहरा नहीं,
जहां हिंद का परचम अब तक तीन रंग में लहरा नहीं ।
ऐसा किला, पहाड़ न नदिया, ऐसा कोई अब सहरा नहीं
जहां हिंद का परचम अब तक तीन रंग में लहरा नहीं ।

कभी हुआ परिवेश राम का कभी कृष्ण अवतार हुआ
कभी हुआ महाभारत का जंग कभी कंस संहार हुआ ।
ऐसी रामायण, ग्रन्थ न गीता ऐसा कोई रंग गहरा नहीं ,
जहां हिंद का परचम अब तक तीन रंग में लहरा नहीं ।

ऐसा किला, पहाड़ न नदिया, ऐसा कोई अब सहरा नहीं
जहां हिंद का परचम अब तक तीन रंग में लहरा नहीं ।

जम्मू और कश्मीर की खातिर कितनी कोखें उजड़ गयीं,
वीर भगत सिंह सुखदेव जैसे रोज़ जनम यहाँ लेते नहीं ।
ऐसा हिन्दू ,सिख न मुस्लिम ऐसा कोई रिश्ता गहरा नहीं
जहां हिंद का परचम अब तक तीन रंग में लहरा नहीं ।

ऐसा किला, पहाड़ न नदिया, ऐसा कोई अब सहरा नहीं
जहां हिंद का परचम अब तक तीन रंग में लहरा नहीं ।

________________हर्ष महाजन ।

रोटि-रोटि कहने लगा, भिखू घर के बाहर

..


रोटि-रोटि कहने लगा, भिखू घर के बाहर
पर रोटि उसको न मिली,महंगा हुआ ज्वार।
महंगा हुआ ज्वार ,घर आया वापिस जायि ,
घर पर उसे खिलावे, तो खुद भूखा रह जायि,
कहे 'हर्ष' लो समझ, यहाँ इक बात है मोटी,
घर आया भुखा जाए न,बिना दाल और रोटी ।

__________________हर्ष महाजन

रोटी निकल रसोइ से, सबकी भूख मिटाए

..

रोटी निकल रसोइ से, सबकी भूख मिटाए,
अमीर गरीब कु एक सा, समझ पेट में जाए ।
समझ पेट में जाए, सभी का एक सा दाना
भूखा न रह पाये, पड़े यु रोज़ ही खाना ,
कहे 'हर्ष' कविराय , सलाम इसे कोटि-कोटि,
बिन मेहनत जु खाए , झटक तू उसकी रोटी ।


___________________हर्ष महाजन

Thursday, April 12, 2012

वो बहुत ही बदजात निकला

..

वो बहुत ही बदजात निकला,
जो ख़्वाबों से बाहर निकला ।

दिल से चाहा था उसे बहुत ,
पर वो फूल में खार निकला ।

मेरे हुस्न पर उसे नाज़ था ,
जाते हुए ज़ुल्फ़ संवार निकला ।

किस तरह उसे भूल जाऊं मैं ,
बे-बस कर गिरफ्तार निकला ।
अब डर है मुझे मर न जाऊं ,
वो शख्स इतना बिमार निकला ।

______________हर्ष महाजन ।

गम और ख़ुशी में यूँ ही फरक करता रहा 'हर्ष'

..

गम और ख़ुशी में यूँ ही फरक करता रहा 'हर्ष',
ज़िन्दगी का मकसद इसके बिना अधूरा ही तो है ।

__________________हर्ष महाजन ।

बंदिशें ग़ज़लों में हो, वो खूबसूरत लगतीं है

बंदिशें ग़ज़लों में हो, वो खूबसूरत लगतीं है,
रिश्तों में अब बंदिशें,कामयाब नहीं होतीं ।

________________हर्ष महाजन ।

Wednesday, April 11, 2012

दर-दर भटक-भटक के जुटाई हैं रोटियाँ

दर-दर भटक-भटक के जुटाई हैं रोटियाँ
महेनत से जोड़-जोड़  कमाई है रोटियाँ

धुप में झुलसता था फिर काम के बिना
भूखी जो देखी नज़रें तो छुपाई है रोटियाँ |


मजदूर बन के ढोये थे मलबे की गोटियाँ
फिर शाम को अदब से फिर खाते थे रोटियाँ

घर आ नहीं सका था मैं त्योहारों में कभी
दिल मार , खा रहा था बासी मैं रोटियाँ ।

सड़कों पे खा रहा था सिपाही की सोटियाँ
मैं इस तरह कमा रहा दो जून की रोटियाँ ।

दर-दर भटक-भटक के जुटाई हैं रोटियाँ
महेनत से जोड़-जोड़  कमाई है रोटियाँ

____________हर्ष महाजन

ज़ुल्फ़ बिखरेगी ख्यालों में लिपट जायेगी

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ज़ुल्फ़ बिखरेगी ख्यालों में लिपट जायेगी,
ज़िक्र  होगा तो सवालों में सिमट जायेगी ।

ज़ुल्फ़ सुलझा लो ज़रा फिर न संवर पाएगी
वरना बदली की तरह और छिटक जाएगी ।


________________हर्ष महाजन

Tuesday, April 10, 2012

अब दिन के उजालों में शबनम हो नहीं सकती

अब दिन के उजालों में शबनम हो नहीं सकती
कोई भी नार वफ़ा छोड़ हमदम हो नहीं सकती।
खुदा के नाम पर ये "हर्ष" शायरी करता रहेगा,
रहे गर्दिश में कोई सहर हरदम हो नहीं सकती ।

_______________हर्ष महाजन ।

मैंने छेड़ी है ग़ज़ल यारो मुझको दाद मिले

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मैंने छेड़ी है ग़ज़ल यारो मुझको दाद मिले,
सुनने वालों को मगर अपनी ही रुदाद मिले ।

उम्र-भर जिनके लिए मैं ये ग़ज़ल कहता रहा,
उनके दर से न कभी मुझको इमदाद मिले ।

राज-ए-दिल राज है हम-राज का चर्चा न करें,
उनके अहसास मेरी ग़ज़लों में बर्बाद मिले ।

नींद से उठ के फिरा करता हूँ यादों में कभी,
कहूं मैं ऐसी ग़ज़ल जिसमे रूह आबाद मिले।

ज़द्द-ओ-ज़ह्द की ज़िन्दगी में उम्र बीत चली,
खुदा करे की  उनको नेक ही औलाद  मिले ।


_____________हर्ष महाजन ।

Sunday, April 8, 2012

ऐ मेरे परवरदीगार मुझे मेरे कलम-ओ-इल्म से मिला दे

ऐ मेरे परवरदीगार मुझे मेरे कलम-ओ-इल्म से मिला दे
बे-वज़ह लोगों की वाह-वाही ने मुझे तबाह कर रखा है ।
किस तरह से छुऊँ मैं अपने उन अन-छूए भावों को बता
जिन्हें बरसाने को हर दर्ज़ा-ए-इल्म बे-परवाह कर रखा है


-------------------------------हर्ष महाजन

चंद बेश-कीमती हीरे हमारे आँगन की धूल में पड़े थे

चंद बेश-कीमती हीरे हमारे आँगन की धूल में पड़े थे
उनको तराशने की इक कोशिश में हम उन पर चढ़े थे ।
चमक तो बहूत निकली उनके तराशे जाने के बाद 'हर्ष'
पर खुद की रौशनी में वो अब भी अनजान से खड़े थे ।

__________________________हर्ष महाजन ।

Saturday, April 7, 2012

क्यूँ उसका दिल है रौशन और ख्वाब क्यूँ मचलते

क्यूँ उसका दिल है रौशन और ख्वाब क्यूँ मचलते
जब दिल में कड़के बिजलियाँ उस बे-वफ़ा के चलते ।


हर्ष महाजन