Wednesday, May 16, 2012

तेरी महफ़िल में मेरी ग़ज़लें सारी रात चली

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तेरी महफ़िल में मेरी ग़ज़लें सारी रात चली
फिर मेरे क़त्ल की बातें भी साथ साथ चली ।

मुझे फुर्सत कहाँ थी तेरे हसीं ख़्वाबों से' 'हर्ष',
फिर रकीबों की साजिशें भी आस पास चलीं ।
 
मर भी जाऊं तो गम नहीं पर गिला है इतना,
खुद तू साज़िश में न आती जो ख़ास ख़ास चलीं ।

मुझ को लगता है बिक गया है खुदा भी यारो
वर्ना बे-वफ़ा की खताएं क्यूँ बार बार चलीं ।


_________________हर्ष महाजन ।

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