Wednesday, June 6, 2012

जो पल-पल दिल को छलता रे कुछ ओर नहीं इक चेहरा रे

जो पल-पल दिल को छलता रे कुछ ओर नहीं इक चेहरा रे 
जो शाम-ओ-सहर तडपता रे कुछ ओर नहीं दिल मेरा रे  ।

इक दर्द है रे इन राहों में जहां शूल हैं रे मंजिल मंजिल
किस खोज में शामिल किया मुझे हो गया शाम सवेरा रे ।

जहां फूल खिले गुलशन गुलशन वहाँ रंग इश्क का गहरा रे
जब पत्तजड़ चलती ड़ाल-ड़ाल वहाँ सूखा पत्ता ठहरा रे ।

कितने ही वादे दफ़न हुए यहाँ कितने ही सपने टूटे रे
ऐ दिल तू अब बे-ताब न हो,यहाँ दिल पे ज़ख्म है गहरा रे ।

गर टूटे पत्तों की खातिर हर शाक जो अश्क बहाती रे
तो कसम खुदा की इस जग में न दिखता कोई सहरा रे ।

________________हर्ष महाजन ।

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