Wednesday, June 13, 2012

मेरे ज़ख्मों को वो जी भर के सजा देते हैं

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मेरे ज़ख्मों को वो जी भर के सजा देते हैं
जो तड़प करदे वो कम उसको मिटा देते हैं ।

मेरे दामन के वो गम अश्क दबा लें लेकिन
वो तो अब पलकों से आंसू भी गिरा देते हैं ।

पशेमाँ होके भी पत्थर से लगाया जो दिल
पर वो काँटों सा समझ दर से हटा देते हैं ।

मैं जुदा कैसे करूँ गम जो बने हैं साहिल
बन के हमदर्द वो ज़ख्मों को हवा देते हैं ।

हर कदम मेरा सवालात नज़र आता है
फिर वो शिकवे-ओ-शिकायत की दवा देते हैं ।


___________हर्ष महाजन ।


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