Tuesday, July 17, 2012

जीते जी इस ज़िन्दगी में दीया उसने जला दिया

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जीते जी इस ज़िन्दगी में दीया उसने जला दिया
इस तरह यूँ मौत का पैगाम मुझको सुना दिया ।

बरसात में भेजे खतों की कश्तियाँ चलने लगीं
इस तरह यादों से मुझको ज़र्रा-ज़र्रा मिटा दिया ।

बे-रुखी दिल से जुबां तक राज़ जब करने लगी,
वो शख्स आया धीरे से जलता दीया बुझा दिया।

खाईं थीं कसमें वफ़ा की जान देने लेने की
उन वादों को उस ग़मज़दा ने किस तरह भुला दिया ।

आखिरी इक फूल सूखा किताब से था चुरा लिया
यूँ लगा था मज़ार पर मुझे जिंदा ही सुला दिया ।

___________________हर्ष महाजन ।

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