Wednesday, July 25, 2012

दस्तूर-ए-वफ़ा कहुं या कुछ मजबूरियां कहुं

दस्तूर-ए-वफ़ा कहुं या कुछ मजबूरियां कहुं
चाहत में उनकी हम तो अब पूरे बदल गए
असूल-ए-ज़माना भी हमें अब  रोक न सका
हम नहीं ज़माने के सब असूल बदल गए |

________________हर्ष महाजन

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