Monday, November 26, 2012

जुगनू की तरह आँख में पलती हो

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जुगनू की तरह आँख में पलती हो
गैरों में रहती हो तभी खलती हो |

हर शब् तेरी याद में नम हैं आखें
ख़्वाबों में अक्सर आकर छलती हो |

कैसे भूल जाऊं तेरे कहे वो शेर अब
तुम आकर जो दिल में मचलती हो |

तुझे मालूम है तू महफूज़ है दिल में
इसीलिए बार-बार आकर मसलती हो |

दिल नहीं तू इसे साज़ ही समझती रही
तभी इसके तारों पे अक्सर फिसलती हो |

_________हर्ष महाजन

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