Wednesday, January 30, 2013

जुस्तजू थी हमें जिसकी वो ज़ख्म बन रिश्ते रहे

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जुस्तजू थी हमें जिसकी वो ज़ख्म बन रिस्ते रहे,
टूट कर बिखरे तो थे पर हमदर्द बन के पिसते रहे |
__________________हर्ष महाजन

वो मेरे ज़ख्मों के खरीदार अब यूँ होने लगे

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वो मेरे ज़ख्मों के खरीदार अब यूँ होने लगे,
पुराने ख़त जो मिले उनको पढ़ के रोने लगे |

यूँ होंट तक का सफर भी कभी न उनसे हुआ,
वो आज लब पे मेरे लब यूँ रख के खोने लगे |

हुआ न उनसे कभी यूँ भी मुझसे मुझसा सलूक,
वो मेरी यादों को कांधों पे रख के ढोने लगे |

मैं हार कर भी सकूं में था कि वो जीत गए ,
ये कैसा इश्क था वो सोच उदास होने लगे |

न पीछे देखा मुड के भी कभी आवाज़ न दी,
पर रोज़ सीने पे तस्वीर रख के सोने लगे |


_______________हर्ष महाजन

ये ज़ुल्म है या बता खेल सितमगर तेरा

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ये ज़ुल्म है या बता खेल सितमगर तेरा,
है दिल ये ज़ख़्मी मेरा तू कहे है घर तेरा |

जुबां पे शिकवे,रंजो-गम,बेरुखी भी अभी,
मगर नसीब में कहे तू है ये दर तेरा |

_______________हर्ष महाजन |

Friday, January 25, 2013

मुहब्बत में फ़रिश्ते भी किस काम आये

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मुहब्बत में फ़रिश्ते भी किस काम आये,
जब-जब मैखाने में हुस्न के जाम आये |

ज़ुल्फ़ कब तक गिरह में बंध कर रहेगी ,
जब तक गर्दिश-ए-दौरां उसके नाम आये |

मैखाने भी अपनी जगह अब बदलने लगे,
अब जहां-जहां हुस्न पर कोई इल्जाम आये |

नफस-नफस मुअत्तर होती है शुरूर-ए-ज़ुल्फ़ से,
मसरूफ-ए-ज़िन्दगी में कोई ऐसी शाम आये |

किस तरह निजात पाए इन जुल्फों से 'हर्ष',
हर कोशिश में अब हम वापिस नाकाम आये |

_____________हर्ष महाजन |

नफस-नफस = साँस-सांस
मुअत्तर = भीगा हुआ
शुरूर-ए-ज़ुल्फ़ =ज़ुल्फ़ का नशा

मुहब्बत में फ़रिश्ते भी किस काम आये

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मुहब्बत में फ़रिश्ते भी किस काम आये
जब-जब मैखाने में हुस्न के जाम आये |

_____हर्ष महाजन

चल के पांवों से मेरे खार हटा देना ज़रा

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चल के पांवों से मेरे खार हटा देना ज़रा,
दर्द अब बहुत है दिल में न हवा देना जरा |

तेरी रंगीन मिजाजी से सबक सीखा नहीं,
नींद आखों से गयी मुझको दवा देना ज़रा |

झूठी तारीफ तो अब मुझसे बयाँ होती नहीं,
तेरे बिन चैन कहाँ मुझको दुआ देना ज़रा |

दिल की दौलत में इजाफा तो हुआ है लेकिन,
अब मैं अनजाने सफ़र पे, तू भुला देना ज़रा |

हर वो लफ्ज़ दे है चिंगारी जो लिखूं तेरे लिए,
है ये शेर आखिरी अब ठंडी सबा देना ज़रा |

_______हर्ष महाजन

Thursday, January 24, 2013

चंद तहरीरों का हर पुलिंदा दीवान नहीं होता

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चंद तहरीरों का हर पुलिंदा दीवान नहीं होता ,
तेज़ हवाओं का हर झोंका तूफ़ान नहीं होता |
बहुत देखें हैं हुस्न पर ग़ज़ल कहने वाले 'हर्ष'
तुझ सा हुस्न चंद लफ़्ज़ों में ब्यान नहीं होता |

_______________हर्ष महाजन

प्यार की हदों को कुछ देर शांत रहने दो

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प्यार की हदों को कुछ देर शांत रहने दो ,
कहीं समंदर में उठे भंवर इन्हें डुबो न दें |

_____________हर्ष महाजन

Sunday, January 20, 2013

Garaz se kahooNga to bhi baat merii maani nahiN jaayegi 'harash'

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Garaz se kahooNga to bhi baat merii maani nahiN jaayegi 'harash'
maiN haq pe hooN to hamaare darmiyaN sab hota taab ke saath.

______________________________Harash Mahajan.

मेरे अहसास किताबों की तरह खामोश क्यूँ होने लगे

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मेरे अहसास किताबों की तरह खामोश क्यूँ होने लगे,
तासीर इनकी देख यूँ अब लोग बेहोश क्यूँ होने लगे |

__________________हर्ष महाजन |



Mere ahsaas kitaboN ki tarah khaamosh kyuN hone lage,
Taaseer Inki dekhlog yuN ab log behosh kyuN hone lage.

_________________________Harash Mahajan

Friday, January 18, 2013

ये मौसम कितना खुशगवार हुआ जाता है

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ये मौसम कितना खुशगवार हुआ जाता है,
शख्स जो रुसवा था बीमार हुआ जाता है |

तलख धुप के अहसास से दिल उदास था जो ,
गेसुओं की छाँव से आबशार हुआ जाता है |

इक उम्र से तस्वीर जो तसव्वुर में थी मेरे,
दिल आज उसका तलबगार हुआ जाता है |

आंसुओं की कीमत शायद पहचान ली उसने,
बस अब दिमागों दिल बेकरार हुआ जाता है |

उसकी रानाइयां मुझ पर इस कदर छायी हैं,
मेरे शब्दों में खुद अब इज्र्हार हुआ जाता है |
किस तरह उतर आया फलक मेरे जिस्म में,
खुद सोच कर अब 'हर्ष' खुद्दार हुआ जाता है |

आबशार=झरना

_______________हर्ष महाजन |

शख्स वो फिर रूप बदल कर आने लगा

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शख्स वो फिर रूप बदल कर आने लगा,
मेरा राज़दाँ हैं मैं फिर धोखा खाने लगा |

काफिर तो है वो नजर मेरी मानती नहीं,
कैसा ये धुंआ मेरी आँखों पर छाने लगा |

मची है धूम गुलशन फिर से लुटेगा कोई ,
दिल मेरा अबकि फिर उसे आजमाने लगा |

उथल-पुथल हो रही है भीड़ मेरे उसूलों की,
लगता है दिल मेरा मुझे ही सताने लगा  |

चाहता हूँ नामुमकिन को मुमकिन बना डालूं ,
सच में शख्स वो फिर से गिडगिडाने लगा |

________________हर्ष महाजन

Thursday, January 17, 2013

उम्र तो कट गयी मेरी शेरो-सुखन में लेकिन

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उम्र तो कट गयी मेरी शेरो-सुखन में लेकिन,
आज तलक मुझको तुझ सा करिदार न मिला |

मिला था चैन बस मुझको तेरे होने से लेकिन
इश्क की राह में तुझ सा वफादार न मिला |

मुझे भी है तलब तेरी निगाहों में सदा तारी,
मगर तुझको भी मुझ सा तलबगार न मिला |

मुझे नफरत ख्यालों से जो वक़्त पे काम न आये,
करूँ इंतज़ार कि तुझ सा दिलदार न मिला |

हश्र में कोई न था चाहने वाला ए 'हर्ष'
यहाँ एक तू था पर तुझ सा जी दार न मिला |

___________हर्ष महाजन

Wednesday, January 16, 2013

तेरे चहरे पे किस्से प्यार के मुझको नजर आयें

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तेरे चहरे पे किस्से प्यार के मुझको नजर आयें,
मुझे गर छोड़ दोगे तुम बताओ हम किधर जाएँ |

हुई ये उम्र आधी सोच कर वो ढेर शिकवों का ,
लिखे उन पत्तों पे तुमने कभी अब हम जिधर जाएँ |

दुआएं छोड़ दी अब हमने अपनी ज़िंदगी की अब,
दुआ तुम कर दो अब हम कब्र में जाकर सुधर जाएँ |

तेरे जलवों के आदी हो गए हम ईलाज क्या इसका
फिराके यार का दर्दे-जिगर ले अब किधर जाएँ |

मुझे अब किस मुसीबत में फंसाया फेरकर नज़रें,
बता तू है किधर दिल से बता फिर हम उधर जाएँ |


____________________हर्ष महाजन |

मेरी ये इल्तजा तू दिल के निशाने पे न आ

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मेरी ये इल्तजा तू दिल के निशाने पे न आ,
मैंने कुछ नगमें कहे उनके तराने पे न आ |

तेरे बिन पल भी मुझको अब यहाँ अजाब लगे,
वक़्त जो गुज़रा तेरे संग बताने पे न आ |

ये इश्क सर पे चढ़ के बोले करूँ इकरार मियाँ
मेरे किरदार पर तू शक जताने पे न आ |

लोग कहते ये दिल नाज़ुक है शीशे की तरह
मगर ये टूटे तो आवाज़,  बताने पे न आ |

चला तो आया है अब इश्क के मैंदां में 'हर्ष',
सफ़र बुलंदी पे, अब कोई बहाने पे न आ |


_________________हर्ष महाजन |

ज़िन्दगी ज़ुल्फ़ नहीं जिसकी अदाओं से चले

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ज़िन्दगी ज़ुल्फ़ नहीं जिसकी अदाओं से चले,
मामला दिल का यहाँ उसकी वफाओं से चले |

ज़ुल्फ़ इक आग है जो ज़ख्में जिगर चाक करे,
मुसलसल भड़के है जब तीर निगाहों से चले |

काश ! इन जुल्फों के सायों से इश्क बाज़ रहे ,
इश्क तो पाक है जो खुद ही दुआओं से चले |

ये ज़ुल्फ़ इश्क है ये ज़ुल्फ़ ज़ुल्म की सरहद ,
कटे हैं सर यहाँ न जाने किन बलाओं से चले |

वो ज़ुल्फ़, ज़ुल्फ़ नहीं इश्क में जो न क़ैद करे ,
खुदा का कहर है ये जो खुद खुदाओं से चले |

_________________हर्ष महाजन |

Tuesday, January 15, 2013

नींद आँखों से गयी और गया दिल का करार

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नींद आँखों से गयी और गया दिल का करार,
तेरी जुल्फों को जो चाहूँ सुलझा दूं मैं इकबार |
हिज्र में दिल नहीं मोहताज़ किसी भी रुत का,
आओ कभी तसव्वुर में सहला दूं मैं इकबार |

_______________हर्ष महाजन |

तेरे हुस्न-ओ-रुआब में कशिश इतनी

_______एक गीत

तेरे हुस्न-ओ-रुआब में कशिश इतनी,
कि डर कर तुझसे मुहब्बत ही न की |

मेरा रोम-रोम तुझे चाहे बहुत
पर मिलने की कभी जहमत ही न की |

जब किया था करम तूने हम पर
थी तपिश बहुत हिम्मत ही न की |

ऐसी ग़ज़ल नहीं, जहां न ज़िक्र तेरा
मेरी कलम ने कभी जुर्रत ही न की |

_________हर्ष महाजन

Monday, January 14, 2013

मुहब्बत का ए दोस्त ये अंजाम होता है

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मुहब्बत का ए दोस्त ये अंजाम होता है,
लहू सा दरिया पर अश्कों सा जाम होता है |

नाज़ुक सा दिल है मेरा उसमे तू ही तू है,
तू ही बता फिर यूँ कहाँ काम होता है |

तुझे मालूम है क्या दिल की अब हकीकत ,
ये तो राह-ए-इश्क में नाकाम होता है |

क्यूँ नाज़ करती हो हुस्न पर अपने यूँ ,
ये रोज़ मेरे इश्क में बदनाम होता है |

मैं भी क्या हूँ रोज़ खता,पर खता करता हूँ ,
मेरे सर तभी हर इक इल्जाम होता है |

_______________हर्ष महाजन

मेरे दिल के टुकड़ों पर तेरा महल देख रहा हूँ मैं

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मेरे दिल के टुकड़ों पर तेरा महल देख रहा हूँ मैं,
अश्कों की नदिया में तेरी चहल देख रहा हूँ मैं |
क्या गुनाह किया जो टुकड़े भी तुझे रास न आये,
हाथों से उडती लकीरों की पहल देख रहा हूँ मैं |

___________________हर्ष महाजन |

इस बार तो चाहत नजर आने लगी है

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इस बार तो चाहत नजर आने लगी है,
उसकी बातें दिल को सहलाने लगीं हैं |
सोच-सोच कर आँखें नम हुई जाती हैं,
कि कैसे दिल में तिनके लगाने लगी हैं |

______________हर्ष महाजन