Tuesday, April 30, 2013

ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 10

:मतला : मतला क्या है ?

 ग़ज़ल के प्रथम शे'र को मतला कहते हैं |जिसके दोनों मिसरों में काफिया होता है | यही दोनों मिसरों मे काफिया न हो तो प्रथम शे'र होने के बावजूद भी शे"र को मतला नहीं कहा जाएगा | ग़ज़ल का प्रथम शे'र अमूमन/समान्यता मतला ही होता है | एक ग़ज़ल में एक से अधिक मतले भी हो सकते हैं , 'हुस्ने-मतला' कहा जाता है |
अच्छे शाइर अपनी ग़ज़ल की शुरू'आत यहीं से करता है ग़ज़ल का मतला अर्ज़ है । क़ायदे में तो मतला एक ही होता है लेकिन बाज शाइर एक से ज्‍़यादा भी मतले रखते हैं । ग़ज़ल का पहला शे'र जो कुछ भी था उसकी ही तुक आगे के शे'रों के मिसरा सानी में मिलानी है ।

उदाहरण

बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी
गुज़र चुकी है ये फ़स्ल-ए-बहार हम पर भी ॥ (मतला)

ख़ता किसी कि हो लेकिन खुली जो उनकी ज़बाँ
तो हो ही जाते हैं दो एक वार हम पर भी ॥ (दूसरा शे'र) --- अकबर इलाहाबादी

काफिये ----

पहला मिसरा=यार
दूसरा मिसरा=बहार
चौथा मिसरा=वार 

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 मक्ता किसे कहते हैं ?

ग़ज़ल के अंतिम शे'र को मक्ता कहते हैं जिसमे शाईर अपना उपनाम सम्मिलित करता है | यदि ग़ज़ल के अंतिम शे'र में शाईर का उपनाम सम्मिलित न हो तो उसे भी सामान्य शे'र ही माना जाता है | उपनाम को उर्दू में 'तख़ल्लुस' कहते हैं |

जैसे हुई मुद्दत के ग़ालिब मर गया पर याद आता है,
वो हर एक बात पे कहना के यूं होता तो क्‍या होता |
अब ऊपर के शे'र में गालिब आ गया है इसका मतलब शाईर ने अपने नाम को उपयोग करके ये बताने का प्रयास किया है कि ये ग़ज़ल किसकी है ।


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सारांश


आज इस क्लास का यहाँ अंत हुआ है..उसका "सारांश" हम सबने अभी तक क्या सीखा तो हम यूँ कह सकते हैं |

@शे'र'- अगर हम यूँ कहें "दो पंक्तियों में कही गई पूरी की पूरी बात जहां पर दोनों पंक्तियों का वज्‍़न समान हो और दूसरी पंक्ति किसी पूर्व निर्धारित तुक के
साथ समाप्‍त हो."

@'मिसरा उला' -शे'र की पहली लाइन होती है
@'मिसरा सानी' -शे'र की दूसरी लाइन होती है
@मिसरा :-'मिसरा सानी' व 'मिसरा उला' का सयुंक्त शब्द
@गागर में सागर भरना मतलब शे'र कहना ।
@क़ाफिया':-वह अक्षर या शब्‍द या मात्रा को आप तुक मिलाने के लिये रखते हैं या "वो जिसको हर शे'र में बदलना है मगर उच्‍चारण समान होना चाहिये "
@रदीफ : एक शब्द जिसे पूरी ग़ज़ल मै स्थिर रहना है या वो जिसको स्थिर ही रहना है कहीं बदलाव नहीं होना है
@ रदीफ़ क़ाफिये के बाद ही होता है ।
*मतला :ग़ज़ल के पहले शे'र को कहते हैं वैसे तो मतला एक ही होगा किंतु यदि आगे का कोई शे'र भी ऐसा आ रहा है जिसमें दोनों मिसरों में काफिया है तो उसको हुस्‍ने मतला कहा जाता है
@मकता : वो शे'र जो ग़ज़ल का आखिरी शे'र होता है और अधिकांशत: उसमें शायर अपने नाम या तखल्‍लुस ( उपनाम) का उपयोग करता है । जो की जरूरी नहीं है

@प्रश्न :-
१) ग़ज़ल मै तुकांत शब्द जो है वो कुछ इस तरह से प्रयुक्त होता है
1-काफिया
२- काफिया

३- x
४- काफिया

५- x
६- काफिया

अगर इसमें कुछ अलग से है तो वो भी दर्शा सकते हैं .....ये छोटी सी सारांश की तालिका अगर आप खुद कहते तो समझते की आपने या हमने कुछ सीखा है |

सादर

हर्ष महाजन

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नोट :-


सभी तकनीकी शब्दावलियों पर महारत तभी हासिल होगी जब कई सारे शे'रों/ग़ज़लों को दिल से पढ़ा जाए उन पर तरजीह दी जाए.....कलम चलाना ज़रूरी नहीं है...अच्छी ग़ज़लों को समझ के पढ़ें...जो अब तक पढ़ा है या सीखा है वही ढूंढें ......वो नहीं जो ..अभी तक नहीं पढ़ा..|
लेकिन इंसानी फितरत वही ढूंढता है जो अभी तक नहीं मिल रहा....
यही असफलता कि कुंजी है...|
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A.कविता का स्वरुप
1.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --१
1.a
शिल्प-ज्ञान -1 a
2.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --2 ........नज़्म और ग़ज़ल
3.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --3
4.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --4 ----कविता का श्रृंगार
5.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --५ .....दोहा क्या है ?
6.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --6
7.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --7
8.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --8
9.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 911.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 11
12.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 12

ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 9



काफिया ---------क्या होता है ?


अन्त्यानुप्रास अथवा तुक को  'काफिया' कहते हैं | क़ाफ़िया वह शब्द है जो प्रत्येक शे'र में .... ग़ज़ल की जान होता है, इसके पर्योग से शे'र में अत्यधिक लालित्य उत्पन्न हो जाती है और इसी उद्देश्य से शे'र मे काफिया रखा जाता है | दरअसल में जिस अक्षर या शब्‍द या मात्रा को आप तुक मिलाने के लिये रखते हैं वो होता है क़ाफिया । रदीफ़(इसे आगे बताया जाएगा ) के ठीक पहले आता है और सम तुकांत के साथ हर शे'र में बदलता रहता है। शे'र का आकर्षण क़ाफ़िये पर ही टिका होता है, क़ाफ़िये का जितनी सुंदरता से निर्वहन किया जायेगा शे'र उतना ही प्रभावशाली होगा। जैसे ग़ालिब की ग़ज़ल है..जरा गौर से देखिएगा .....

' दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्‍या है,
आखि़र इस दर्द की दवा क्‍या है '

अब यहां पर आप देखेंगें कि.... 'क्‍या है' .....स्थिर है और पूरी ग़ज़ल में स्थिर ही रहेगा |

वहीं दवा,
हुआ

जैसे शब्‍द परिवर्तन में आ रहे हैं । >>>>>>>>>>ये क़ाफिया है

'हमको उनसे वफ़ा की है उमीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्‍या है|

वफा क़ाफिया है |
ये हर शे'र में बदल जाना चाहिये । मगर ये कायदे से देखा जाए बहुत ज़रूरी भी नहीं है ...और ऐसा नहीं है कि एक बार लगाए गए क़ाफिये को फि़र से दोहरा नहीं सकते पर वैसा करने में हमारे शब्‍द कोश की ग़रीबी का पता चलता है और आने वाली ग़ज़लों पर भी लोगों को असर होता है...मगर करने वाले करते हैं..एक मैश'हूर ग़ज़ल देखिये.....
'दिल के अरमां आंसुओं में बह गए
हम वफा कर के भी तन्‍हा रह गए,
ख़ुद को भी हमने मिटा डाला मग़र
फ़ासले जो दरमियां थे रह गए'

अब देखिये इसमें रह क़ाफिया फि़र आया है क़ायदे में ऐसा नहीं होना चाहिये था हर शे'र में नया क़ाफि़या होना चाहिये ताकि दुनिया को पता चले कि आपका शब्‍दकोश कितना प्रभावशाली और समृद्ध है और ग़ज़ल में सुनने वाले बस ये ही तो प्रतीक्षा करते हैं कि अगले शे'र में क्‍या क़ाफिया आने वाला है ।

उदाहरण

किस महूरत में दिन निकलता है
शाम तक सिर्फ हाथ मलता है
वक़्त की दिल्लगी के बारे में
सोचता हूँ तो दिल दहलता है -(बाल स्वरूप राही)

उपरोक्त उदाहरण से हम 'रदीफ़' की भी पहचान कर सकते हैं इसलिए स्पष्ट है कि प्रस्तुत अश'आर में 'है' शब्द रदीफ़़ है तथा उसके पहले के शब्द

निकलता,
मलता,
दहलता
सम तुकान्त शब्द हैं तथा प्रत्येक शे'र में बदल रहे हैं इसलिए यह क़ाफ़िया है।
मुझे उम्मीद है इस छोटी सी परीभाषा आपका काफिया ज़रूर मज़बूत कर देगी |

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रदीफ़..........रदीफ़ क्या है ?


शे'र में काफिये के बाद आने वाले शब्द अथवा शब्दावली को 'रदीफ़' कहते हैं | दुसरे शब्दों में ये एक ऐसा समांत शब्द अथवा शब्द समूह है ....जो मतले के दोनों मिसरों के आखिर में आता है और अन्य अश'आर के मिसरा-ए-सानी अर्थात दूसरी पंक्ति के अंत में आता है और पूरी ग़ज़ल में एक सा रहता है।..रदीफ़ का शाब्दिक अर्थ है --'पीछे चलने वाली' | काफिये के बाद रदीफ़ के पर्योग से शे'र का सौंदर्य और अधिक बढ़ जाता है | अन्यथा शे'र में रदीफ़ होना भी कोई अनिवार्य नहीं है | रदीफ़ रहित ग़ज़ल अथवा शे'रों को 'गैर मुरद्दफ़' कहते हैं | रदीफ़ में   मूल बात ये है कि ये हमेशा स्थिर रहता है ऊपर ग़ालिब के शे'र में देखिये ------
दवा क्‍या है,
हुआ क्‍या है
में क्‍या है स्थिर रहता है और....ये 'क्‍या है' पूरी ग़ज़ल में स्थिर रहना है इसको रदीफ़ कहते हैं इसको आप चाह कर भी नहीं बदल सकते ।
अब हमारे सामने दो बाते आ गयीं

अर्थात
क़ाफिया वो...... जिसको हर शे'र में बदलना है |मगर उच्‍चारण समान होना चाहिये मतलब हम-आवाज़ होना चाहिए |

और रदीफ़ वो जिसको स्थिर ही रहना है कहीं बदलाव नहीं होना है ।

रदीफ़ क़ाफिये के बाद ही होता है ।

जैसे ''मुहब्‍बत की झूठी कहानी पे रोए,
बड़ी चोट खाई जवानी पे रोए'

यहां पर ' पे रोए' रदीफ़ है |

पूरी ग़ज़ल में ये ही चलना है कहानी और जवानी क़ाफिया है जिसका निर्वाहन पूरी ग़ज़ल में पे रोए के साथ होगा मेहरबानी (काफिया) पे रोए (रदीफ), जिंदगानी (काफिया) पे रोए (रदीफ) , आदि आदि । तो आज का सबक क़ाफिया हर शे'र में बदलेगा पर उसका उच्‍चारण वही रहेगा जो मतले में है और रदीफ़ पूरी ग़ज़ल में वैसा का वैसा ही चलेगा कोई बदलाव नहीं होगा

उदाहरण

आग के दरमियान से निकला
मैं भी किस इम्तिहान से निकला
चाँदनी झांकती है गलियों में
कोई साया मकान से निकला - (शकेब जलाली)

ऊपर अश'आर में से 'निकला' शब्द रदीफ़ है। 

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A.कविता का स्वरुप
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ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --१
1.a
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2.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --2 ........नज़्म और ग़ज़ल
3.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --3
4.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --4 ----कविता का श्रृंगार
5.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --५ .....दोहा क्या है ?
6.
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10.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 10
11.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 11
12.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 12

साहित्य की वीणा में अब कुछ बातें कर लें

...

साहित्य की वीणा में अब कुछ बातें कर लें,
आओ मिलकर छंद-मयी मुलाकातें कर लें |
डूब चलें ग़ज़लों के सरोवर में कुछ इस तरह,
कहने के अंदाज़ में इकट्ठी कुछ सौगातें कर लें |

________________हर्ष महाजन

Saturday, April 27, 2013

ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --8

मिसरा :
दोस्तों कल भी शे'र के मुतल्लक बात करते हुए हमने इस शब्द के बारे मे बात की थी ....जितना मैं जानता हूँ मिसरे के बारे में ..उसी प्रकार आपके समक्ष मैं अपनी बात रखता हूँ.....मैं अपनी बात दोहराता हूँ ....

मिसरा :-----शे'र की प्रत्येक पंक्ति को मिस
रा कहते हैं, इस प्रकार एक शे'र में दो पंक्तियाँ अर्थात दो मिसरे होते हैं- मिसरा-ए-उला और मिसरा-ए-सानी।

मिसरा-ए-उला

शे'र की पहली पंक्ति को मिसरा -ए- उला कहते हैं। 'उला' का शब्दिक अर्थ है 'पहला'।
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मिसरा-ए-सानी

शे'र की दूसरी पंक्ति को मिसरा-ए-सानी कहते हैं। 'सानी' का शब्दिक अर्थ है 'दूसरा'।

दुष्यंत कुमार हिंदी का सबसे पहला ग़ज़ल कार था ..उसका एक ग़ज़ल का शे'र
उदाहरण के रूप मे लेते हैं ......

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए ---(दुष्यंत कुमार)[1]

उपरोक्त शे'र में शे'रकी पहली पंक्ति (हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए) को 'मिसरा-ए-उला'

और दूसरी पंक्ति (इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए) को 'मिसरा-ए-सानी' कहा जाएगा।
दोस्तों शे'र कहना कोई आसान नहीं है....शे'र कहने से पहले उसके हर पहलू का समझना बहुत ज़रूरी है...जब हम शे'र कहते हैं तो---- उसकी दो लाइनें होती हैं ----शे'र की पहली लाइन जो कि एकदम स्‍वतंत्र होती है और जिसमें कोई भी तुक मिलाने की बाध्‍यता नहीं होती है और हम कोई भी अहसास लिए उसे कह सकते हैं । इस पहली लाइन को कहा जाता है मिसरा उला ।


___________
उसके बाद आती है दूसरी लाइन :-जो कि बहुत ही महत्‍वपूर्ण होती है |जिसमे हमें अपनी विद्या का सब कुछ अर्पण करने का हुनर दिखाना होता है.....इसके लिए हमें अपने शब्द/अहसास/कला/हुनर/और पहली लाईन से उभरे प्रश्नों को समेटते हुए अपनी बात के अंत को अंजाम देना होता है जिस से कोई भी पहली लाईन के मुतल्लक प्रश्न बाक़ी न रह जाए ..मिसरा सानी में सब कुछ समाकर हमें दिखाना है |
इसमें ही आपकी/हमारी/अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना होता है और यही वो लाईन होती है जो शायर को शायर बनाती है....उसे वाह-वाह तक ले जाती है...भाषा जितनी सरल होगी उतना ही लोगों के दिलों तक पहुंचेगी....मुश्किल लफ्ज़ ढूँढने वाले ...किताबों तक ही सीमित रह जाते हैं |..अब हमें देखना है ..इसमें किस टेक्नीक का पर्योग करना होता है | देखिये ....
सबसे पहले --- इसमें तुक का मिलान किया जाता है | अर्थात पूरी की पूरी बात हमें इन्ही दो लाइनॉ में ही कह देनी हैं और | पहली लाइन में आपको आपनी बात को आधा कहना है ( मिसरा उला ) जैसे -- एक शे'र --"कैसा है अब शोर यहाँ पर दिखते हैं घबराए लोग " इसमें शाइर ने आधी बात कह दी है अब इस आधी को पूरी अगली पंक्ति में करना ज़रूरी है (मिसरा सानी) "ढूँढा करते प्यार यहाँ पर सदियों से ठुकराए लोग" । मतलब मिसरा सानी---- वो जिसमें आपको अपनी पहली पंक्ति की अधूरी बात को हर हालत में पूरा करना ही है । तभी ये ग़ज़ल का हिस्सा बन पायेगा |
दूसरी और देखिये गीत के साथ इसका अंतर -----इस से आपको गीत के बारे में भी मालूम होगा....गीत में क्‍या होता है ------जब आप गीत कहते हैं ----अगर आपका अहसास --एक छंद में कोई बात पूरी न कर पाय तो अगले छंद में ले सकते हैं पर यहां ग़ज़ल में जब शे'र कहने पर ऐसा नहीं होता ---- यहां तो पूरी बात को कहने के लिये दो ही लाइनें हैं हमें उसी में अपनी बात पूरी करनी होती है....इस बीच बहुत सी चीज़ें ( मुक्तक/रुबाई) हैं जो हम आपको बता सकते हैं...लेकिन वो सब बताने पर आप पज़ल होने की कगार पर पहुँच जायेंगे....| हमें अभी शे'रों में ही खेलना है अर्थात गागर में सागर भरना मतलब शे'र कहना ।
मिसरा सानी हमारे शे'रों के लिए एक महतवपूर्ण हिस्सा है ----मिसरा सानी का महत्‍व अधिक इसलिये है क्‍योंकि आपको यहां पर बात को पूरा करना है और साथ में तुक ( काफिया--जिसके बारे में हम आपको आगे आने वाले लेस्सन में बताएँगे ) भी मिलाना है । मतलब ये है कि एक पूर्व निर्धारित अंत के साथ बात को खत्‍म करना |(मतलब मिसरा सानी ।)
तो आज हमने जाना कि मिसरा क्या होता है ..शे'र किस तरह पूरा होता है ...और एक छोटा सा शब्द ..'मिसरा' --कितना बड़ा अर्थ लिए हुए है |

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अगला अध्याय हमारा काफिये के ऊपर होगा ....... काफिया,  जो ग़ज़ल की जान होता है
--उसके बिना ग़ज़ल  को ग़ज़ल नहीं कहा जा सकता -----
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ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --१
1.a
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ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --7

मैंने पहले भी कहा था .................
एक क़ामयाब शायर होने के लिये चार चीज़ें ज़रूरी हैं विचार, शब्दावली , व्याकरण और उसका प्रस्तुतीकरण । विचार तभी आयेंगे जब आप अपने समय की नब्ज़ं को समझ सकेंगे और उससे परिचित होने कि कोशिश करेंगे | कवि होना आसान नहीं है कव
ि होने के नाते हमारी जि़म्मेदारी है कि हम समाज पर नज़र रखें । फिल्मो मे क्या हो रहा है....आपके आसपास क्या हो रहा है दुनिया किस और मुखातिब है |
शब्द या शब्दावली इस विदा कि दूसरी मांग हैं जिसकी ज़रूरत है शब्द तभी आते हैं जब गहन अध्ययन होता है, एक पेज लिखने के लिए हमें कई पेजों का अध्ययन करना होगा....अपने आप में एक पेज लिख्नेह की बात आएगी । तो शब्द जो शब्दहकोश से आते हैं उनका शब्दहकोश तभी समृद्ध होगा जब आप पढ़ेंगें । यहां एक बात कह देना चाहता हूं कि शब्द ना तो उर्दू के, फारसी के या संस्कृकत के हों जिनका अर्थ सुनने वाले को डिक्शबनरी में ढूंढना पड़े, वे ही शब्दो लें जो आम आदमी के समझ में आ जाए क्यूंकि कविता उसी के लिये तो लिखी जा रही हैं ।

तीसरी चीज़ है जो इस विदा में ज़रुरत है व्याकरण की |जिसको उर्दू में अरूज़ कहा जाता है वो भी ज़रूरी है क्योंकि जब तक रिदम ही नहीं होगी तब तक तो बात भी मज़ा नहीं देती है तो अरूज़ बिना कविता प्रभाव पैदा नहीं करती ।व्याकरण ..को छंद से परिपूर्ण करना होगा | कविताछंदमुक्तर भी होती है पर छंदमुक्त होने के बाद भी उसमें रिदम होता है ये रिदम पैदा होता है व्या'करण से अरूज़ से जो आपको यहां सीखने को चाहिए था ।
चौंथी प्रापर्टी है प्रस्तुतिकरण ये तो आपके अंदर ही होता है किस तरह से आप अपनी कविता या गज़ल को पढ़ते हैं या उसे पेश करते हैं..ये अपना अपना आर्ट है यहाँ हम उसे पेश करने के तरीके से अवगत करा सकते थे मगर जियादा आपके खुद पर मुनस्सर है । वैसे जब ग़ज़ल अरूज़ के हिसाब से होती है तो उसमें लय स्वयं ही आ जाती है । यहाँ बहुत से ऐसे साथी मोजूद हैं हैं जिन्हें अरूज़ का ज्ञान है जो आपकी रचनाओं को अरूज़ के तराज़ू पर कास कर देख सकते थे....जिस से आपके और हमारे इल्म में इजाफा हो जाता और कसने वाला जो होता है उसे हम अरूज़ी कहते हैं उन्हें अरूज़ का ज्ञान होता है |
_____
दोस्तों ग़ज़ल के लिए हमें उनकी प्रापर्टीस के बारे जानना होगा....कि वो क्या हैं....क्या क्या ज़रुरत है एक ग़ज़ल में ...जिसकी वज़ह से ग़ज़ल को ग़ज़ल का नाम दिया गया है.....हर कृति ग़ज़ल क्यूँ नहीं होती....| आपके मन में कई प्रशों के सवाल गूंजेंगे.....कि जो भी आपने लिखा या कहा ..वो ग़ज़ल है कि नहीं ?...ये कैसे मालूम होगा....क्यूंकि हर दो लाईन शे'र नहीं होता और हर कृति ग़ज़ल नहीं होती...| जब आप ग़ज़ल कि प्रापर्टीस के बारे मे जानते ही नहीं ....तो कैसे कह सकते हैं ....कई बार ऐसी कृति को कहते वक़्त इंसान ग़ज़ल कह देता है ....जब महफ़िल से आवाज़ आती है के ये तो ग़ज़ल नहीं है..तो कितना अटपटा सा फील होता है....क्यूंकि हम जानते ही नहीं कि ग़ज़ल होती क्या है.....हर वो कृति जो ग़ज़ल की तरह गायी जाए वो ग़ज़ल नहीं होती....|__

ग़ज़ल में जो ज़रूरी चीज़ें है...जो हमेशां मजूद होनी चाहिए उन्हें हम विस्तार से एक एक करके यहाँ विश्लेषण करते हुए लेंगे....की ये क्या हैं....और इन्हें कैसे और इस तरह कहा जाता है....यहाँ पढने वाले जितने भी शख्स हैं वो यही समझ रहे होंगे...जो भी आता है यहीं से शुरू करता है...ये सब तो आता है....लेकिन नहीं...सिर्फ इन शब्दों को जान लेना ही सब कुछ नहीं है ....इनमें अलग अलग भी बहुत कुछ है जा न ने के लिए |....ग़ज़ल मे इन छ: चीज़ों का समावेश होता है...जिस से ग़ज़ल को ग़ज़ल का नाम दिया जाता है....इसके इलावा इसकी बाक़ी प्रापर्टीस को हम बाद में अलग अलग से लेंगे...|

शे'र : मिसरा :काफिया : रदीफ़ :मतला : मक्ता :

__
दोस्तों ये धारा-पर्वाह कहना और लिखना .....मेरी अभी किसी किताब में मौजूद नहीं है.....ये आपके लिए सीधे कलम से हाज़िर है....आप इसे दुबारा किसी लेख के रूप में चाहेंगे तो हाज़िर नहीं कर पाऊँगा....इसी तरह ही सीधे कलम से मुझे देना होगा.....जो भी सीखना है ध्यान पूर्वक पढ़िए और सीखने कि कोशिश कीजियेगा.....वेसे तो इन्टरनेट पर हजारों लेख पड़े हैं वहां से भी अध्ययन कर सकते हैं ...लेकिन जो सीधे से समझ आता है..वो लेखों से समझ नहीं आ सकता ...जो लोग इसे कापी करके बाद में पड़ने के लिए रखना चाहते हैं...वो भूल में होंगे के कुछ सीख पायेंगे....हमारे गुरु कहा करते थे...सिर्फ किताबॉ से पढने वाले कभी भी शिक्षा नहीं पा सकते...उनसे उनकी ईगो ही सब कुछ छीन लेती है....जो सीख भी लेते हैं वो भूल जाता है..|

चलिए आज अपनी क्लास का पहला अध्याय हम श'एर से शुरू करते हैं ....

शे'र

दोस्तों ये शब्द क्या है पहले तो ये ही सबकुछ समझने की बात है...जब भी महफ़िल में हम इसके बारे में बात करते हैं तो प्रश्न ये आता है.... कि ये ग़ज़ल वाला शेर है या कि जंगल वाला मगर ये उलझन केवल देवनागरी में ही है क्योंतकि उर्दू में तो दोनों शेरों को लिखने और उनके उच्चारण में अंतर होता है । ग़ज़ल वाले शेर को उर्दू में कुछ ( लगभग) इस तरह से उच्चारित किया जाता है ' शे'र' इसलिये वहां फ़र्क़ होता है वास्तोव में उसे शे'र कहेंगे तो दुसरे( जानवर) शेर से अंतर ख़ुद ही हो जाएगा । ये शे'र जो होता है इसकी दो लाइनें होती हैं । वास्तव में अगर शे'र को परिभाषित करना हो तो कुछ इस तरह से कर सकते हैं दो पंक्तियों में कही गई पूरी की पूरी बात जहां पर दोनों पंक्तियों का वजन में समान हो और दूसरी पंक्ति किसी पूर्व निर्धारित तुक के साथ समाप्तर हो । यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि मैंने पूरी की पूरी बात कहा है |

वास्तव में कविता और ग़ज़ल में फर्क ही ये है कविता एक ही भाव को लेकर चलती है और पूरी कविता में उसका निर्वाहन होता है ।

ग़ज़ल में हर शे'र अलग बात कहता है और इसीलिये उस बात को दो पंक्तियों में समाप्तै होना ज़रूरी है ।

इन दोनो लाइनों को मिसरा कहा जाता है शे'र की पहली लाइन होती है यहाँ कि 'मिसरा उला' और दूसरी लाइन को कहते हैं 'मिसरा सानी' ।

दो मिसरों से मिल कर एक शे'र बनता है ।

अब जैसे उदाहरण के लिये ये शे'र देखें :-

'हुई यूँ ग़मों की ये शाम आखिरी है " ... ये मिसरा उला है |

ये किसी की मौत पर है

' पहना दो कफ़न ये सलाम आखिरी है ' ये मिसरा सानी है ।

और ' ये मिसरा ऊला का पूरक है ' ये मिसरा सानी है ।

तो आज हमारे पास याद रखने योग्य क्या बात हुई ....

जब भी आप शे'र कहें तो उसमें जो दो मिसरे होंगें उनमें से :-

उपर का मिसरा जो कि पहला होता है उसे मिसरा उला कहते हैं

और

जिसमें आप बात को ख़त्म करते हैं ..यानी तुक मिलाते हैं वो होता हैं मिसरा सानी ।

वो अभी मुकम्मल नहीं है ।..तो आज के लिए इतना काफी है ..कल हम शब्द मिसरा लेंगे......|


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1.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --१
1.a
शिल्प-ज्ञान -1 a
2.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --2 ........नज़्म और ग़ज़ल
3.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --3
4.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --4 ----कविता का श्रृंगार
5.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --५ .....दोहा क्या है ?
6.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --6
8.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --8
9.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 9
10.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 10
11.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 11

ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --6

ग़ज़ल शिल्प ज्ञान में हमने अभी तक जो भी सीखा उसको दोहराते हुए आगे बढ़ते हैं ----गज़ल को लेकर हमेशां वाद-विवाद ही हुआ है....बहुत से तकनीकी शब्‍द हैं जिनके बारे में विस्‍तृत जानकारी...तो परिचर्चा मे उठे सवालों  मे ही होती है ..लेकिन मे ये सब मुमकिन नहीं होता ....सबसे पहले तो हम यहाँ दुबारा ये जानने की कोशिश करते हैं  के ग़ज़ल है किस बला का नाम | इसका प्रारंभिक ज्ञान ही हमारे लिए बहुत ज़रूरी है |..

एक अच्छा और क़ामयाब शायर होने के लिये  चार चीज़ें बहुत ज़रूरी हैं विचार, शब्‍द, व्‍याकरण और उसका सभ्य तरीके से प्रस्‍तुतिकरण और आजकल के दौर में या किसी भी दौर में आपके पास....विचार तभी होंगें ....जब आप अपने समय के अनुसार उसकी नब्‍ज़ से परिचित होंगें , माहौल से परिचित होंगे आपके आसपास क्या क्या घटित हो रहा है ...वर्तमान की  क्या मांग है....अब कलयुग में सतयुग तो कहाँ आ पायेगा...। हमें अपने शे'रों में कुछ लिखने के लिए या कहने के लिए आज के दौर की नब्ज़ ही टटोलनी होगी   | चाहे वो भारत के भविष्य की बात हो या एक लाचार नारी के अस्तितित्व की |
मेरे गुरूवर कहते हैं आज के दौर की नब्‍ज़ में जो समा रहा हो वही लोगों की पसंदगी के दायरे में  आयेगा..और लोगों को सोचने पर मजबूर करेगा..|आइये समाज कि दिशा को टटोलें |

दोस्तों ..इस खूबसूरत बज़्म में मैं सभी आने वालों को खुशामदीद कहता हूँ .....और उम्मीद करता हूँ आपको यहाँ हम सबको अपने फन को और पैना करने का मौका मिलेगा ...इस विदा से हम कितना फ़ायदा उठा सकते हैं ..ये सब हमारे खुद पर मुनस्सर है ....|दोस्तों सच पूछो त६ओ ये कोई क्लास नहीं के हम यहाँ अपनी कीमत बढाने के लिए आये हैं | हम सब एक जैसे हैं ....एक दुसरे से सीखने का अवसर प्राप्त करने के लिए इकठा होना चाहते हैं |यहाँ एक एक व्यक्ति का इजाफा और उसके साथ उसकी जानकारी और फन से सभी लोग लाभान्वित होंगे..| मैं उन सभी मित्रगन से जो यहाँ होने वाली परिचर्चा .....(मैं इसे क्लास का नाम नहीं देना चाहूँगा.)..से लाभ उठाना चाहते हैं ...वो भाग ले सकते हैं और मैं यकीनन कह सकता हूँ आप सभी के फन से इस बज़्म कि रौनक में चार चाँद लगेंगे..| मैं उन सभी जानकारों से दरख्वास्त करूंगा जो भी इल्म वो लिए चल रहे हैं अगर हम दोस्तों मे तकसीम करें तो ये विदा उन्हें भी लाभ पहुंचाएगी..फिर जो भी फन यहाँ तैयार होगा उनकी क्र्तियाँ पढने का मज़ा भी दौगुना हो जाएगा |

चलिए अब आते अपने मूल मुधधे पर ......

एक बात जो ख़ास तौर पर हमें याद रखनी चाहिए....कभी भी कोई विद्या छुप कर हासिल नहीं की जा सकती ....विद्या के लिए किताब को हाथ लगाना होता है....उसके सामने प्रकट होना पड़ता है.... ईगो को एक तरफ रखना होता है.....छोटा या बड़ा कोई नहीं है....सब एक सामान है...इस पोस्ट पर बहुत से लोग आये मगर ..छुप कर परिचर्चा में भाग लेने की मंशा से...या उनके लिए वेस्ट आफ टाईम है |

इस बार मैं इस मंच के करन्धारों/एडमिन से अनुरोध है के ....मंच को डिलीट न किया जाए.....बहुत से लोगों की और कवियों की अभूतपूर्व रचनाएं और जानकारियाँ उसमे नष्ट हो जाती हैं...|

मैं सभी से एक बार फिर अनुरोध करता हूँ के शे'र के बारे में जो भी जानकारी है वो टूटे फूटे सब्दों मे ही सही..लेकिन अपने शब्दों मे जानकारी दें.....शायद मैं भी कुछ सीख सकूं |
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दोस्तों मैं यहाँ बार -बार ये कहता हूँ मैं ग़ज़ल का कोई विशेषज्ञ नहीं हूं मैं अपने आपको किसी दावे का हक़दार भी नहीं कहता हूँ फिर भी जितना भी जानता हूं जो ज्ञान खुद और इस नेट जीवन में अपने बड़ों से पाया है ,उसको आप सब के साथ शेयर/बांटने की कोशिश भर है और मैं नहीं जानता कि कितना कामयाब हो पाऊंगा और इस विदा के चलते मैं  आप से भी जो सीख सकता हूँ सीखने की  पूरी कोशिश करूंगा  । मेरा ये प्रयास उन लोगों के लिये है जो सीखने की प्रक्रिया में हैं उन लोगों के लिये नहीं जो ग़ज़ल के बहुत अच्छे जानकार हैं । वे लोग तो मुझे बता सकते हैं कि मैं कहां ग़लती कर रहा हूं । क्यों्कि मैं वास्तव में एक प्रयास कर रहा हूं कि वे लोग जो हिंदी भाषी हैं वे भी ग़ज़ल की ओर आएं | जिन्हें अच्छा लगे वप अपना लें ..जो बुरा लगे उसे जानें दें...| मेरी कोशिश यही है के ग़ज़ल को कैसे एक साधारण तरीके से सिंपल भाषा में कहा जा सके |। शब्द-कोष से मोटे मोटे शब्दर अब लोगों को समझ में ही नहीं आते हैं तो दाद कहां से दें ।
इसलिये ग़ज़ल को उस भाषा में कहा जाए जिस भाषा में जनता समझ पाए तो ही हमारे कहने और लिखने में फायदा है |तभी हम कुछ सीख पायेंगे..| अपनी कृति को लोगों के ज़हन मे कैसे पहुँचाना है...यही प्रस्तुतिकरण होता है |
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दोस्तों आज मेरे साथ वो लोग जो ग़ज़ल कहना चाहते हैं अगर मौसूद रहकर सीखना चाहते हैं वो समझ लें कि कोई ज़रूरी नहीं है उर्दू और फारसी के मोटे मोटे शब्द अपनी कृति में रख कर ही कहें , आप तो उस भाषा में कहें जिस में आम हिन्दुस्तानी बात करता है ।मुझे ये बातें इस लिए करनी पढ़ रही हैं क्सिसी भी क्लास में जाने के लिए हमें पहले अपना ज़हन तैयार करना होगा उसके लिए भूमिका बहुत ज़रूरी है जिस से आप सभी तैयार हो सकें.... ग़ज़ल लिखने के लिये आपको तैयार करने की भूमिका ही बाँध रहा हूँ फिर जब आप तैयार हो जाएंगे तो फिर मैं हम आगे बढ़ेंगे...|
और मैं फिर से कहूँगा..जो भी बहार से झाँकने से अच्छा है के हम सीधे क्लास में इकठे होकर चलें..और हाजिरी देकर साथ चलें...|आपका हमारे साथ होना गर्व का घोषक है ...|
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आज बस मैं इतना कहना चाहूँगा ....मुझे एक शख्स का मेस्सेज आया था ..जिनको ग़ज़ल की व्याकरण का ज्ञान चाहिए था....मैं उनसे अनुरोध करता हूँ....विदा के बीच मे से कुछ भी जानकारी आप चाहें वो ज़रूर मिलेगी..लेकिन उसका फायदा उसके कायदे से लेने में...वरना समझ से परे हो जायेगी |
ग़ज़ल कि व्याकरण का मतलब....,हिंदी में जिसे जिसे छंद कहा गया और जिसको लेकर पिंगल शास्त्रर की रचना की गई जिसमें हिंदी के छंदों का पूरा व्याकरण है । उर्दू में उसे अरूज़ कहा गया । ग़ज़ल में चूंकि बातचीत करने का लहज़ा होता है इसलिये ये छंद की तुलना में बहुत ही जियादा लोकप्रिय हो गया । पिंगल और छन्दक के क़ायदे बहुत मुश्किल होने के कारण और मात्राओं में जोड़ घट को संभलना थोड़ा मुश्‍िकल होने के कारण हिंदी में भी उर्दू का अरूज़ चल पड़ा ।
इस छोटी सी परिभाषित लाईनों से आप जितना अभी तक समझ पाए होंगे...मुझे नहीं मालूम...इसमें हिंदी का ज्ञान भी शामिल है....थोडा ज्ञान कहने वाले को हमेशा मुश्किल मे डाल देता है

हमें सिर्फ ये बाते अभी तक याद रखनी हैं ..जिसे मैं फिर दोहराता हूँ....एक क़ामयाब शायर होने के लिये चार चीज़ें ज़रूरी बहुत हैं विचार, शब्द , व्याकरण और प्रस्तुकतिकरण ।
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1.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --१
1.a
शिल्प-ज्ञान -1 a
2.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --2 ........नज़्म और ग़ज़ल
3.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --3
4.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --4 ----कविता का श्रृंगार
5.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --५ .....दोहा क्या है ?
7.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --7
8.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --8
9.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 9
10.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 10
11.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 11
12.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 12