Friday, May 24, 2013

तेरे ये अश्क जो महफ़िल में बन शराब चले

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तेरे ये अश्क जो महफ़िल में बन शराब चले,
ये हुस्न जाम संग जो उठ के बन शबाब चले |
ये बज़्म ऐसी थी गिर-गिर के उठे शेर बहुत,
ये दिल जो क़त्ल हुए फिर वो बन कबाब चले |

______________हर्ष महाजन

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