Monday, May 27, 2013

लगता है हरसूं नीरसता छाने लगी है

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लगता है हरसूं नीरसता छाने लगी है,
दोस्ती में कलियाँ मुरझाने लगी है |

क्या हुआ किस तरह हुआ क्यूँ हुआ,
मंच पर लिखी तहरीर बताने लगी है |

क्या लिखूं किस तरह लिखूं बताये कोई,
परेशानी, पेशानी पे नजर आने लगी है |

सच है ये या कमबख्त ये वहम है मेरा ,
नज़्म पर अब हर रीव्यु बताने लगी है |

यहाँ हर शख्स हमसफ़र तो नहीं फिर भी,
रफ्ता-रफ्ता हर मसलाहत गहराने लगी है |

कुछ वक़्त और इंतज़ार कर के देख ऐ 'हर्ष'
लम्हा-लम्हा मुश्किलात नजर आने लगी है |

______________हर्ष महाजन

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