Sunday, May 19, 2013

हो रही रुक्सत मेरी ये जान धाम को

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हो रही रुक्सत मेरी ये जान धाम को ,
चढ़ा तू जितने फूल चढाने है शाम को |

उल्टे पाँव चल दिया जज़्बात छोड़ कर,
जी रहा था अब तलक मैं तेरे नाम को |

पीयूँगा आज जब तलक रूह मेरे पास है,
आओ पियेंगे भूल कर किस्से तमाम को |

देख रहा हूँ लाश मैं, मातम है शाम को ,
ये रूह तड़प के कह रही अब छोडो जाम को |

किरदार लाश का 'हर्ष' मुश्किल निभा सकूं ,
कोई और चेहरा ढूंढो निपटा ले ये काम को |


________________हर्ष महाजन

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