Wednesday, September 25, 2013

मैंने माना है तू हाथों की लकीरों में नहीं


...

मैंने माना है तू हाथों की लकीरों में नहीं,
पर दुआ आज भी मैं तेरे लिए करता हूँ |

तू मुक़द्दर न सही पर गिले से खारिज हूँ ,
हो वज़ह कुछ भी रकीबों से पर मैं डरता हूँ |

हुआ जो मुझ से जुदा मुड के तूने देखा नहीं,
आखिरी खत तेरा पढ-पढ़ के रोज़ मरता हूँ |

अब तलक तुझको मैं अलविदा भी कह न सका,
ख़्वाबों में रोता मगर, सुबह मैं मुकरता हूँ | 

___________हर्ष महाजन

No comments:

Post a Comment