Friday, August 8, 2014

मैंने माना नहीं कमतर था मुकद्दर मेरा

...

मैंने माना नहीं....कमतर था मुकद्दर मेरा ,
पर मेरी ग़ज़लों में....सबने ही जुदाई देखी |
अपने किरदार की....औकात जो देखी मैंने,
अक्स देखा था जो आईने में तबाही देखी |

________________हर्ष महाजन

No comments:

Post a Comment