Monday, February 16, 2015

कतरा-कतरा खुद को लोगों में झोंक दिया उसने

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कतरा-कतरा खुद को लोगों में झोंक दिया उसने,
गफलत में शायद छुरा पीठ में घोंप दिया उसने |

सब कुछ बदल देंगे इस बार फिर से कहा उसने,
निशाँ-ए-कब्र पर फतवा खुद ही ठोक दिया उसने |

फिक्र तो है आँखों में और दर्द भी खूब है उनमें,
मगर तड़का परायी हांडी में छोंक दिया उसने |

ये मर्ज़ भी खूब है ये इश्क-ए-राजनिति का ‘हर्ष’,
देश की उन्नति को राह में ही रोक दिया उसने |

तीर निकल चुका है वापिस तो नहीं आने वाला,
‘आस्तीन का सांप’ खुद बनकर सौंप दिया उसने,

बिखर रहे हैं कांच ही कांच घर-घर में आजकल,
खफा है शख्स खुद क्यूँ ‘आप’ को वोट दिया उसने |

ये वकालत नहीं मगर इक आईना है भविष्य का,
देश की धाराओं पर कहाँ-कहाँ चोट दिया उसने |

देश द्रोही न कहें तो क्या कहें उस शख्स को ‘हर्ष’,
अक्ल-ओ-ईमान गैर मुल्क को सौंप दिया उसने |

_______________हर्ष महाजन

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