Thursday, October 8, 2015

होगा अफ़सोस अगर रस्म ये अदा की जाए





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होगा अफ़सोस अगर रस्म ये अदा की जाए,
दोस्त ज़ख़्मी हो मगर उसको सज़ा दी जाए |
हमसे पूछोगे ग़ज़ल क्या और क्या है असर,
इक नदी दर्द की, बस आहों से बहा ली जाए |

____________हर्ष महाजन

Monday, October 5, 2015

इतनी करो न हमसे शरारत न यूं कभी

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इतनी करो न हमसे शरारत न यूं कभी,
आँखों से उठ न जाए शराफत न यूं कभी |
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देखे, जो चांदनी में, नहाया तिरा बदन,
हो जाए न शहर में बगावत न यूं कभी |
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वो चाँद जब फलक से कभी इस तरह झुके,
देखी, न इस तरह की , इबादत न यूं कभी |
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आओ, चलें चमन से, कहीं दूर, गुलबदन,
ये चाँदनी, करे न, खिलाफत न यूं कभी |
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चर्चे तिरे, शहर में, जफाओं के, इस तरह,
लगने लगे न दिल में अदालत न यूं कभी |
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_________हर्ष महाजन
221 2121 1221 212

पर निंदा हम सब करें जाग-जाग दिन रात

============दोहे============
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पर निंदा हम सब करें जाग-जाग दिन रात
करम बढावें आपणा बिन करनी बिन घात |
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रख सलीब सर आपने, करो भजन दिन रात,
आपु पार लगाऊ ओ हर पल मुर्शिद साथ |
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निंदा निकल जुबान से, ऐसा खेल दिखाय,
घर इक उजड़े आपणा, पर घर ईंट लगाय |
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मन खेला तु खूब किया, अब गठरी तु ढोये
काल कोठरी में पडा, अब काहे तु रोये |
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जुगत संवारों आपणी, गुर मूरत रख साथ,
कारज खुद कर जायगा, गुर तेरे जब हाथ |
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_________हर्ष महाजन