Tuesday, June 30, 2015

तनहा रहकर अपनों की याद खूब आती है

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तनहा रहकर अपनों की याद खूब आती है,
अब मगर अपनों से मुलाकातें नहीं होती |

___________हर्ष महाजन

Saturday, June 27, 2015

बे-सबब आज उदासी क्यूँ है....बहुत दिल में

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बे-सबब आज उदासी क्यूँ है....बहुत दिल में,
इश्क न पहले था न आज मुहब्बत दिल में |
जलता फिरता हूँ पढ़-पढ़ के तेरे ख़त यूँ ही,
जाने क्या बात.....हुई ख़ाक उल्फत दिल में |

________________हर्ष महाजन

Friday, June 12, 2015

मुब्तिला इश्क में वो एहसास-ए-अदब भूल गए

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अपनी मंजिल के लिए होश-ओ-खबर खो के चले,
बा-वस्फे शौक़ दुश्मनी.........वो मगर बो के चले | 

मुब्तिला इश्क में वो....एहसास-ए-अदब भूल गए,
बंद आखों से अपनी....शाम-ओ-सहर खो के चले |


हमारा जौक-ए-सितम अब...फलक को छूने लगा,
बिखर तो हम भी गए पर......वो मगर रो के चले | 


ये इश्क शोला हुआ......शिद्दत-ए-ख़ुलूस टूट गया,
ये साँसे चलती रहीं हाथ...........मगर धो के चले |


छुपे हैं घाव हज़ारों............अभी पर ज़िंदा हैं हम,
जहाँ को छोड़ कर हम........खूब मगर सो के चले |



हर्ष महाजन



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मुब्तिला = मसरूफ

बा-वस्फे शौक़ = इच्छा के बावजूद

एहसास-ए-अदब = शिष्टाचार का अनुभव

जौक-ए-सितम = अत्याचार सहने का शौक़

शिद्दत-ए-ख़ुलूस = सच्ची दोस्ती, मैत्री
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अपनी मंजिल के लिए...होश-ओ-खबर खो के चले

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अपनी मंजिल के लिए...होश-ओ-खबर खो के चले,
बा-वस्फे शौक़ दुश्मनी...........वो मगर बो के चले |
मुब्तिला इश्क में वो.....एहसास-ए-अदब भूल गए,
वो बंद आखों से अपनी शाम-ओ-सहर खो के चले |
__________________हर्ष महाजन


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मुब्तिला = मसरूफ
बा-वस्फे शौक़ = इच्छा के बावजूद
एहसास-ए-अदब = शिष्टाचार का अनुभव

Thursday, June 11, 2015

बे-हिसाब हुए हैं बलवे दिल में उसके मेरी खातिर,

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बे-हिसाब हुए हैं बलवे दिल में उसके मेरी खातिर,
कितने ही अरमान हुए हैं आशकारा मेरी खातिर ।
सरे-राह जब उस शख्स ने पुकारा मुझे बेरहमी से ,
तो खुदा ने हक़ीकतन ज़मीं पे उतारा मेरी खातिर ।

---------------------हर्ष महाजन


[आशकारा = प्रकट

Sunday, June 7, 2015

नश्तर-ए-ज़ुबाँ ने उसके अब इस कदर पर हैं कुतरे

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नश्तर-ए-ज़ुबाँ ने उसके अब इस कदर पर हैं कुतरे,
अब खुद परिशां है कि वो तन्हाई में कहाँ तक उतरे ।

------------------हर्ष महाजन

Saturday, June 6, 2015

ऐ मौला इक ज़िंदा दिल उसके नाम कर देना

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ऐ मौला इक ज़िंदा दिल उसके नाम कर देना,
वो शख्स गम-ए-फ़िराक का मारा है आजकल |

_________________हर्ष महाजन

नगमा-ए-इश्क पर, सवाल उठने लगे हैं 'हर्ष

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नगमा-ए-इश्क पर, सवाल उठने लगे हैं 'हर्ष',
किस कदर रश्क करने लगा है ज़माना तुम से |

________________हर्ष महाजन

Friday, June 5, 2015

अक्सर आ जाता है गम-ए-गुफ्तगू में वो भी आलम ‘हर्ष’

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अक्सर आ जाता है गम-ए-गुफ्तगू में वो भी आलम ‘हर्ष’,
दायरा-ए-हुकूक दायरा-ए-होश से आगे निकल जाते है |
बदल जाती है कहीं रस्म-ए-वफ़ा......बदल जाते हैं रिश्ते कहीं ,
हो जाता है चाक-ए-गिरेबाँ....और धागे निकल जाते हैं |
_____________________हर्ष महाजन

मुझे तेरी जवानी ढलने का अंदाजा कतई न था

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मुझे तेरी जवानी ढलने का......अंदाजा कतई न था,
वरना उलझता नहीं कभी तेरी जन्नत-ए-निगाह में |

___________________हर्ष महाजन

कब तलक दस्तक देते रहोगे म्यान में रहकर ‘हर्ष’

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कब तलक दस्तक देते रहोगे ..... म्यान में रहकर ‘हर्ष’,
दुश्मन-ए-जाँ है गर ज़िन्दगी की भीख मुझे गंवारा नहीं |

_______________हर्ष महाजन

न मिली सुराग-ए-मंजिल और न ही कोई ख़त उसका

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न मिली सुराग-ए-मंजिल......और न ही कोई ख़त उसका,
बड़ा पसोपेश में हूँ कीमत अदा करने का वक़्त अब आया |

_______________हर्ष महाजन

आलम तमाम ज़िंदा यहाँ कह-कह अल्फाज़-ए-गैर

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आलम तमाम ज़िंदा यहाँ कह-कह अल्फाज़-ए-गैर,
जज़्बात-ए-गम कहते रहे हम शाम से हुई सहर |
आँखों में अश्क कम नहीं हाँ दिल भी अगर उदास,
नग्मों बिना न साज़ चले ओ सुर बिन चले न बहर |

________________हर्ष महाजन

कितने बे-जुबान अरमां थे दिल के दरमियाँ मेरे

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कितने बे-जुबान अरमां थे दिल के दरमियाँ मेरे ,
जाने किसने राह्जनी की है दिल-ओ-दीवार में |

___________________हर्ष महाजन

Thursday, June 4, 2015

बे-वफ़ा से कभी सुलह न करना

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बे-वफ़ा से कभी सुलह न करना,
दर्द गर है उसका जुदा न करना |
लूटा खूब होगा कशिश ने उसकी,
मगर फिर से उसे खुदा न करना |
__________हर्ष महाज

Wednesday, June 3, 2015

मेरी जिंद का ये सफ़र इस तरह तमाम किया

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मेरी जिंद का ये सफ़र इस तरह तमाम किया,
लिख रुक्सत मुझे खुदा ने......अहतराम किया |
उसकी महफ़िल में तल्ख़ आब तो बहुत है मगर,
सकूंन-ए-ज़िंदगी का........यूँ ही इंतजाम किया | 


________________हर्ष महाजन

जाने उल्फत में कई लोग सज़ा देते हैं



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जाने उल्फत में कई लोग सज़ा देते हैं,
जाम-ए-इंसा पे बवालों का मजा लेते हैं |
मर्ज़-ए-दिल उनका मुहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं,
वो दवा धूप की, जुल्फों से घटा देते हैं | 


_____________हर्ष महाजन



चूमा किये था होंट नशा मुल्तवी न हो

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चूमा किये था होंट नशा मुल्तवी न हो,
मैं होश में रहूँ न रहूँ वो ज़ख़्मी न हो |
छा रहा हूँ इस तरह मैं खुद शराब पर,
दिल मेरा करीब तो हो कोई छवी न हो |

______________हर्ष महाजन

क्यूँ है काबिज़ वो ज़हन में कहीं बन के इक ख्याल

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क्यूँ है काबिज़ वो ज़हन में कहीं बन के इक ख्याल,
वो तो गुजरा हुआ कल था कहीं जुल्फों का खुमार |
हम तो कायल थे लबों के पिए थे जाम-ओ-जमाल,
सागर-ए-जाम आज बदला है बना जाम-ए-सिफाल | 

_____________हर्ष महाजन




जाम-ए-सिफाल = clay cup 

Tuesday, June 2, 2015

चाँद छुप जाएगा घूंघट तो हटाकर देखो

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चाँद छुप जाएगा घूंघट तो हटाकर देखो,
शाम तन्हाई में आँखें तो मिलाकर देखो |
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मेरी आवाज़ रुला देगी ज़माने भर को,
गर वो जानेंगे मैं ज़िंदा हूँ सुनाकर देखो |
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मैं ही दौलत हूँ तेरी याद दिलाओ उनको,
लोग मानेंगे ज़रूर तुम तो बताकर देखो |
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मेरी हर सोच 'अदा ज़ुल्म तुम्हीं से' मुब्तिला,
उनको नज्में मिरी ग़ज़लें तो दिखाकर देखो |
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जो भी अफ़साने बने लोग मज़ा लेते हैं,
गर हो अखबार पुरानी तो उठाकर देखो |
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यूँ भी आसान नहीं इश्क छुपाना यारो,
ये सफ़र आँख से दिल तक तो निभाकर देखो |

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हर्ष महाजन