Saturday, February 27, 2016

ऐसा सैलाब अब...मेंरी आखों में क्यूँ

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ऐसा सैलाब अब...मेंरी आखों में क्यूँ ,
ख्वाब मेरे मुसलसल सलाखों में ज्यूँ |
था सुना इश्क पर......है खुदा मेहरबां,
फिर उठा अंजुमन से वो लाखों में क्यूँ |

___________हर्ष महाजन

इस कदर से थका हूँ ज़िंदगी से मैं अब

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इस कदर से थका हूँ ज़िंदगी से मैं अब,
कोई अच्छा लगे भी तो इज़हार न हो |
कैसे मानू तू रग-रग में शामिल सदा,
जब तलक दिल से कोई भी इकरार न हो |

___________हर्ष महाजन

कुछ हैं रिश्ते मेरे संग नाकाम से

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कुछ हैं रिश्ते मेरे संग नाकाम से ,
हैं मेरे वो मगर कुछ हैं बदनाम से |
हूँ पशोपेश में छोडूं उनका सफ़र,
हैं टिके जो मेरी खुशियों के दाम से |
___________हर्ष महाजन