Sunday, September 25, 2011

माँ

दर्दो के सैलाब पलभर में चुन लेती है माँ
आह निकलने से पहले सुन लेती है माँ
सैलाब छुपा लेती है अपनी पलकों में वो
हम चाहे न चाहें खुद सपने बुन लेती है माँ |

_________हर्ष महाजन

Saturday, September 24, 2011

दुशमनी में पली दोस्ती

हर बात यूँ ही खतम नहीं हो जाती ऐ 'हर्ष'
दुश्मनी में पली दोस्ती भी यूँ ही स्वाह होती है |

________हर्ष महाजन

dil ki sair

kahiN na kahiN hamaare lafz unke dil ki sair karte haiN
jaane anjaane har lamha unse yuN  hi bair karte haiN
Qeemte toh yahaN yuN hi gir rahi haiN mohabbatoN ki
hum naahak hi aajkal apne dil ki baat zaher karte haiN.


___________________harash mahajan

हलफनामाँ

मुझ संग दुशमनी का जूनून उसे वफ़ा होने से पहेले था
मेरे हसीं ख़्वाबों का पैकर वो खफा होने से पहले था
भूल गया है वो सब कुछ वफाओं के तौर तरीके 'हर्ष'
ये सभी बातों का हलफनामाँ जुदा होने से पहले था |

____________हर्ष महाजन

घायल

ज़ुल्फ़ तेरी मांग तेरी उस पर नागिन सी लटें
घायल खुद हुआ हूँ मैं, तेरी खता कुछ भी नहीं |

________हर्ष महाजन

गजल


__________गज़लिका

अनजान सी जब गुजरी थोड़ी सी तब गुजरी
हद से तो तब गुजरी वो जिंद से जब गुजरी |

आँखों में काजल था और बालों में  संदल था
बे-मौत मारा गया जाने ख़्वाब से कब गुजरी |

कल रात वो ख्वाबों में नागिन बन डंसती रही
अब तक न कोई जिंद में ऐसी कोई शब् गुजरी |

जब यादों को भूला मैं नए साजों पे झूला मैं
वो गैरों को छोड़ आयी अब खुद पर जब गुजरी |

न ज़ुल्म करो इतना खत लिख न सको जितना
दुनिया छोड़  "हर्ष" चला हद से जब गुजरी |

______हर्ष महाजन

हर याद मीठी

हर याद मीठी बन जाये तो हर रात गुजर जाती है
प्यार में नहीं इकरार तो जिंद बे-बात गुजर जाती है |

___________हर्ष महाजन

Friday, September 23, 2011

khalish

Tere dil ki har khalish ko sanjoya maine
afsos to hua mujhe ye kya kiya maine

___________Harash Mahajan

Aitbaar

us aitbaar ka kya karooN jspe woh khara na utar saka
Sajaaye to bahoot sochi haiN usey pakadna baaki hai

_________harash mahajan

तिलिस्म

उनके इस तिलिस्म का अब क्या करें
चाँद से मुखड़े पर हमेशां हिज़ाब करते हैं |

_________हर्ष महाजन

खुशिओं की दूकान

गर हर शख्स के लिए खुशिओं की दूकान होती
यकीनन ये खुशीआं कुछ दिन की मेहमान होती
कीमत तो घट ही जाती हर चीज़ की दुनिया में
मगर हर रूह की झोली इस जहां में वीरान होती |


_________हर्ष महाजन

जो बोया है

जो बोया है अब वही तो काटने आयें हैं हम
खुदा ने यही कहा ले वही, तिलमिला नहीं |

_______हर्ष महाजन

Thursday, September 22, 2011

सांप



अपने बन कर जो उम्र भर गम दिया करते हैं उन्हें
"आस्तीन के सांप" का मुहावरा दिया  करते हैं सांप  |

____________हर्ष महाजन्

उसने अपनी असलियत को पहचान लिया है

दोस्तों एक कच्ची ग़ज़ल आपके बीच जो अभी पूरी तरह परिपक्व नहीं है......सीधे कलम से आप तक बिना कागज़ पर आये आपके समक्ष पेश है.....ये ग़ज़ल एक सज्जन की तहरीर पढ़ रहा था तो मेरी इस तहरीर ने जनम लिया ...उम्मीद है आप इसे अपनी कलम का साया देंगे....शुक्रिया|
___________________________________________________
__________ग़ज़ल

उसने अपनी असलियत को पहचान लिया है
अपने पर आज उसने इक अहसान किया है |

हर बात पर किये हैं अपनों पर ज़ुल्म बहुत
अब नहीं करेगा ऐसा उसने एलान किया है |

उसकी फितरत से वाकिफ हैं सब मिलने वाले
उसने फिर कहा मुझे नाहक बदनाम किया है |

जिस थाली में खाया हर बार छेद किया उसने
हर झूठ को देकर हवा फिर तूफ़ान किया है |

उसके और हमारे बीच अब रिश्ता ही ऐसा है
उसकी हर खता पर हमने सब कुर्बान किया है |

____________हर्ष महाजन

Tuesday, September 20, 2011

दिल का दर्द

एक अपने बड़े ही सज्जन मित्र के लिए कही ये रचना ...मात्राओं की  रेखा को लान्गती हुई यहाँ पेश करने की हिमाकत कर रहा हूँ....और उम्मीद करता हूँ के वो शख्स जहां भी हों उनके मन की दशा को पढ़ती हुई ये पंक्तिया उन्हें वापिस आने को मज़बूत करेंगी...मैं अपने साथिगन अपने हम-कला दोस्तों से दरख्वास्त करूँगा के इस कविता पर उनके भाव्बीने शब्द दरकार हैं......उम्मीद है ये कविता उनके भावों से सुसज्जित होगी............शुक्रिया  |
__________________________________________


दर्द अब इतना होने लगा दिल में है तूफ़ान
तुझ सा न कोई मिल सका कैसा तू इंसान
कैसा तू इंसान यूँ ही सब छोड़ दिया क्या ?
मन के सब बे-ईमान किसी को असर हुआ क्या ?
कहे 'हर्ष' कविराए यहाँ तो सभी कमज़र्द
आ जाओ मिल के चलेंगे भुला के सब दर्द |

____________हर्ष महाजन

Monday, September 19, 2011

कर्मों का हासिल

मेरी तहरीरों को मिटाना इतना आसां नहीं
ये मेरा यकीन है कोई दिल का गुमाँ नहीं |

चुप जुबां से जो तुमने चाहा कदर की मैंने
ये तेरे कर्मों का हासिल है मेरा ईमान नहीं |

_________हर्ष महाजन
४.०८.२०११ 

Saturday, September 17, 2011

फूल

इस गुलिस्तान में खिलने को तो फूल बहुत हैं
कोई फूल तुझ जैसा भी हो तो कोई बात बने |

हर्ष महाजन

Thursday, September 15, 2011

Beh'r par kuch prashn

1.....बहर के बारे में कई ऐसे प्रश्न हैं जो जहन में कौंधते रहते हैं ...कुछ ऐसे ही प्रश्न यहाँ  पढ़ने वालों को मदद मिल सके ..दर्ज करना चाहूगा .....
बहुत बार ये सवाल मन में आता है के क्या सभी हिंदी गज़ल और नगमें बहर में होती हैं ? या सिर्फ गज़ल ही बह'र में होती हैं ?

इसका उत्तर देते हुए बस इतना कहना चाहूँगा ...
तकरीबन पुराने गाने बहर में ही मिलते हैं कई बार traditional बह'र न होकर उन्हें खुद की किसी बहर में कहा गया है ...तभी तो उन में रवानी है और लए है | वर्ना जिस तरह वो गाये गए हैं ...अगर बहर में न हों तो गाना ही मुश्किल हो जाए |

Wednesday, September 14, 2011

बे-वफा

तेरी किन-किन बातों का हिसाब किया जाए
तू  तो अपना है  फिर क्या जवाब दिया जाए
वफायें तेरी बिक रही हैं जवानी के शिकंजे में
अब तू बता इन बे-वफाओं का क्या किया जाए

क्षणिका

नेता जी 
पत्नी और नौकरानी में 
भेद नहीं रखते हैं
वे हमेशां उदारवादी
व्यवस्था का पक्ष धरते हैं |

हर्ष महाजन

क्षणिका

बदलते माहौल में
अर्थ भी बदलने लगे हैं
ज्योतिष की आड़ में
दिल की दूकान करने लगे हैं 
हाथ देखने वाले
अब हाथ पकड़ने लगे हैं |

हर्ष महाजन

क्षणिका

फूँक फूँक कर 
पाँव रखना भी 
नाकाम हो गया |
मैं  फूंकता ही रहा 
वह बहुत दूर निकल गया |

हर्ष महाजन

Sunday, September 11, 2011

कवि-मन

मेरे दोस्तों |
आज मेरे एक मित्र कवि ने मुझ से कुछ सवाल पूछे उनका उत्तर देते हुए मन में ख्याल आया के उनका निचोढ जो भी निकला उसे कविता मंच पर दर्ज कर दूं .....मेरे मन के भाव शायद किसी और को भी अच्छे लगें .....प्रश्न कुछ इस तरह था ...कवि-मन क्या होता है ? ये कौन लोग होते हैं ?
उसके प्रश्न पूछना था मुझे मेरा वो वक्त याद आ गया जब मेरे गुरु ने मुझे दीक्षा देते वक्त एक हिदायत दी थी .........इसी कवि-मन व्यक्तित्व के बारे में |
उनका कहना था -------कवि-मन वो व्यक्ति होता है जो कोई भी बात/कविता/ग़ज़ल या और भी कोई विधा से कहते वक्त जो संदेस उसकी जुबां से निकले वो किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं होना चाहिए कवि मन बिना किसी द्वेष-भाव के ख्यालों में विचरित होता है अगर वो किसी व्यक्ति की क्रियाल्कालापों के वश में आकर अपनी कृतियों को अंजाम देता है तो वो कवि-मन हो ही नहीं सकता न ही कभी कामयाबी की सीडियां चड सकता है| उस व्यक्तित्व को लोग कुछ अरसे में दिल से निकाल बहार कर देते है |
गुरु जी ने ये कहते हुए बहुत से कवियों के नाम जब गिनवाए मन विचलित सा हो उठा.....उनोने बताया के उनके किसी भी लेख या कविता में किसी के प्रति कभी कोई बैर भाव नहीं देखोगे......और ये सच भी था....कबीर/तुलसी/बुल्लेशाह.......आदि आदि....---सभी तो अपनी धुन में मस्त कहा करते थे....|कुछ भी अगर हम तंज लिखते हैं किसी व्यक्ति विशेष से परे होना चाहिए जिस से कोई भी हम-कलम व्यक्ति आहात न हो जिस से अपनी कला का अपमान हो | कला की पूजा करो ...रोज़ नमन करो....हमारी कलम अगर अपने हुनर के लिए जहर उगलेगी तो खुद ही मर जायेगी....हमें इसकी रेस्पेक्ट करनी चाहिए......अपनी लेखनी जिस से भी आप रोज़ लिखते हैं ...उसकी पूजा करनी चाहिए और ये शपथ लेनी चाहिए ...ऐ खुदा ..हे भगवान....आज हमारी कलम से किसी का मन न दुखे.......और शाम को अपनी कलम को जब विराम दो तो ये मनन करके करो ..के आज हमारी कलम कितनी शांत भावना में चली ...|

जय गुरुदेव

आपका अपना

हर्ष महाजन

छंद


दर्द कलम का बढने लगा होने लगा कोहराम
बे-सबब उन लोगों का बिकने लगा ईमान
बिकने लगा ईमान भूले सब अपनी कला को
डूब रहे तो कहे टाल तू आयी बला को
कहे "हर्ष" कविराए सभी को भूलो न फ़र्ज़
लिखने वाला लिखता रहे भुला के दर्द |
हर्ष महाजन

Friday, September 9, 2011

बे-वफ़ा कलम

मेरी ही कलम ने लिख दी आज दास्ताँ उससे जुदायी की
जो मुझ से न कर सकी वफ़ा क्या सजा दूं इस बे-वफायी की |
 
हर्ष महाजन

Thursday, September 8, 2011

तवायफों की तरह

बड़ी अजीब है ये दुनिया तवायफों की तरह
हमेशां चाहने वाले बदलती रहती है |

जिंदगी तुझे कब तक बचा के रखेगी
मौत तो रोज़ निवाले बदलती रहती है |

_____हर्ष महाजन

तब्दील

मेरा बस चले तो वक्त को तहरीरों में तब्दील कर दूं
हर गज़ल और नज़्म को अपनी कलम से अदील कर दूं |

Nazm

yahaan har waqt khushiyoN ke mele haiN 
par sabhi dukh abhi tak hamne Jhele haiN 

Kya koi wazen uthhayega  hamara yahaaN
sabko jahaaN meiN apne apne jhamele haiN... 

hameiN rashq hota hai tumhaari ab wafa per
hameiN ranj bhi hota hai us waqt ki zafa per 

per tumne kaha tum mere saath ho hameshaN
Mere dil maiN pyaar umra hai teri is raza per


harash

Ghazal

Bhoole se bhi milne ya milaane nahiN aate
jab waqt padaa dost sayaane nahiN aate.

Sach kehne ka anjaam toh maloom tha lekin,
Sach baat hai ke mujh ko bahaane nahiN aate.

Kis aas maiN kya soch ke kis baat pe jaane,
Hum roothh gaye or woh manaane nahiN aate.

shaayad tire aane ki khabar ho gayee hogi,
be-waj'h to mousam bhi suhaane nahiN aate.

Jaati nahiN duniyaa se mahek jinke sukhan ki,
Aksar hai yaqeeN aise dewaane nahiN aate.
 

Harash Mahajan

इंतज़ार है मुझे शमशान में

क्यूँ तब्दील किया तूने मुझे लाश में
तेरा भी इंतज़ार है मुझे शमशान में |
मुझे करवट लेना भी गंवारा नहीं है
ज़रा भी खोट नहीं है मेरे ईमान में ||


हर्ष महाजन

Wednesday, September 7, 2011

न हवाला दीजिए

उस दर्द का अब न हवाला दीजिए
जो जा चुका है न निकाला कीजिये
लोग लिये हुए हैं हाथों में खंजर
बे-बात न बात को उजाला दीजिए |

अपनी बात

अपनी बात कुछ इस तरह से कही जाए
खुदा के बन्दों से  सहेजता से सही जाए |

_______हर्ष महाजन

रुखसार

उसके रुखसार को तबीअत से सहला रहे हो
अब काजल मेरी ही आंख का चुरा रहे

Tuesday, September 6, 2011

ग़ज़ल शायराना

क्षमा दे रौशनी जिसमे वही है ग़ज़ल शायराना 
शाम-ए-जिंदगी में खुद क्यूँ फिसलने आ गयी

हादसों की वो इबारतें


दिख रहीं चेहरे पे उसके हादसों की वो इबारतें
इक उम्र से दिल में खडीं जो चोटों की इमारतें

रो दिया करती है


देख कर मेरे खतों को अक्सर वो रो दिया करती है
शायद मेरी यादों को मुसलसल वो खो दिया करती है |

Monday, September 5, 2011

हुस्न-ओ-शबाब

हुस्न-ओ-शबाब बिना जिंदगी जहन्नुम है
मुसलसल शराबी के लिए यही बाकी रहा

हर्ष महाजन

सब बदल जाएगा


आज नहीं तो कल सब बदल जाएगा
घर को लगी आग तो सब जल जाएगा।

गिर के संभलना इंसा की फितरत है मगर    
नज़रों से गिरा कभी न संभल पायेगा |

दर्द है तो छिपाओ न इसे दुनियां से
इस भूल पर वो इक दिन पछतायेगा |

न करो प्यार इतना के पछताना पड़े
सब कुछ लुटा के बे-वफ़ा कहलायेगा |

अनजान राहों में चलना समझ-दारी नहीं
लगी ठोकर तो कभी न संभल पायेगा |

हर्ष महाजन

एक लाश




_____रूह चली आज
अपने घर को
छोड़ चली इक
सुरीले स्वर को
_____दूंद्ती है ....
वो मजबूत कांधा
बड़ी महरबानी उनकी
जिन्होंने
जिस्म को
मजबूती से बाँधा........!!!!

_______क्या इसलिए..????
कहीं ये उठ न जाए ...?
या यूँ  कहिये.......
-----गणित कहीं ......
जायदाद- खोरों का !!!
बिगड न जाए !!!!!

____शीघ्रता छा जाए....!!!
सिर्फ रोने का शगुन भर
रह जाए  !!!!!
सब की नज़रें ....
उस बे-जान लाश पर ..
जो पड़ी है यूँ ही
अपनों के विश्वास पर !!!
रूह उसकी टहल रही है
सुन रही है
अपनों के ताने-बाने ...!
बुन रहे हैं जो
रहे थे कभी........
जाने पहचाने और सयाने .....
पुकार रहे हैं
उस बे-जान पड़ी लाश को 
____अरे ओ ~~~~~
कहाँ छुपा रखा है ?
करारनामा !!!!
बड़ा ही खूंसठ था ये बुड्डा
बड़ा ही था खिस्याना ~~~
जाते हुए भी
नहीं बता गया
उसका ठिकाना ?
बे-रहम ...बे-हया !!

___________बीवी गुर्रायी
इधर-उधर देख चिल्लायी ~~~~
ज़रा जल्दी करो !!!!!!
लाश पेट से फूल आयी!!!!!
_____बाद में समझ आयी
उसे तो बिलकुल ...उदास और
.....चुप रहना है |
वो भूल गयी थी
इक पति-व्रता इस्त्री का
यही तो  इक गहना है ...!!

____रूह ने ली
इक बे-जान सी अंगडाई .....
इक बूँद  !!!!!
सूक्ष्म आँखों से
खुद-ब-खुद
चली आयी

इक बूँद  !!!!!
सूक्ष्म आँखों से
खुद-ब-खुद
चली आयी |
________________




हर्ष महाजन

____ग़ज़ल



दोस्तों से अनचाहे प्रश्न  करने लगा है
ये मंच मुझे अजनबी  लगने लगा है |

जुबां जो कभी चुप न थी अब खामोश है
ये सिलसिला दिल पत्थर करने लगा है |

ख्यालों में तस्वीर नज़र आती है उनकी
दिल  बे-सबब दीवारों पे चलने लगा है |

वादा किया, और निभाएगा ये कहा उसने 
क्या मालूम नयी चाल से छलने लगा है |

उनकी बातें जहरीले तीरों से कम न  थी
यूँ  लगा "हर्ष" जहन्नुम में पलने लगा है |

_________हर्ष महाजन

Sunday, September 4, 2011

वो ज़ख्म दिए चले

प्यार मैं उनसे इस कदर करता चला जाऊं
वो ज़ख्म दिए चले जाएँ मैं भरता चला जाऊं
उनकी ये जिद्द के वो मुझे मार ही डालें
मेरी ये जिद्द के उनपे मरता चला जाऊं |

हर्ष महाजन

बे-अदब

टूट के बिखर जाना कोई सबब नहीं
तू मेरा दोस्त है कोई बे-अदब नहीं |

चाहता तो बहुत हूँ

तू बहुत उदास है
तुझे अब मनाऊँ कैसे
चाहता तो बहुत हूँ
पर दोस्त 
तुझे
हाथों की लकीरों में
सजाऊँ कैसे !!!!!!!!

हर्ष महाजन

_______ग़ज़ल



मैं भयानक कवितायें पढ़ने लगा हूँ
पर अपने साये से भी डरने लगा हूँ |

है कोई खुदा यहाँ जो मुझे उठा सके
मैं अमर हूँ अहसास करने लगा हूँ |

इशारों पर चलना समझदारी तो नहीं
पर मैं तो नींद में भी चलने लगा हूँ |

प्यार में हद से गुजर जाना ठीक नहीं
मैं खुद किसी की आँखों में पलने लगा हूँ |

मुश्किल से उसको दर्द में हसाया मैंने
मैं खुद अब उस  दर्द से गुजरने लगा हूँ |

__________हर्ष महाजन

Saturday, September 3, 2011

क्यूँ मिली तुम

क्यूँ मिली तुम मुझे इस तरह राहों में
न खतम होने वाले सिलसिले हैं हम |

Friday, September 2, 2011

कारवाँ दर कारवां है जिंदगी

गज़ल
ख्वाब गर आंखों में हैं तो फिर जवां है जिंदगी
खिल सके न गुल तो पूछो तू कहाँ है जिंदगी
राम जाने क्यूँ किसी ने किस बिना पे कह दिया
हाद्साते कारवाँ दर कारवां है जिंदगी |

जिंदगी जिंदा दिली का नाम होता था कभी
आजकल क्यूँ आंसुओं की दास्ताँ है जिंदगी |

जिंदगी के रास्तों में फूल भी और ख़ार भी
जानकर भी हर वफ़ा की इम्तिहां है जिंदगी |
जब खुदा ने खींच दीं हैं कुछ लकीरें हाथ में
अब फकत इक दासता के दरमियाँ है ज़िंदगी |
 


__________हर्ष महाजन

Thursday, September 1, 2011

Janam din

_________Janam-Din-Mubarak___________


Tere janam-din pe tujhe aaj maiN kya pesh karooN
Dil ke jazbaat hi sochta hooN tujhe pesh karooN

Aaj bas hai nahiN kuchh paas meri bitia ke liye
Par ye  baabul ka simta pyaar tujhe pesh karooN

Pal jo Gujare the tere saath  bachhoN ki tarah
Sochta hooN wahi lamhaat tujhe pesh karooN

Kal ko hum hoN ke na hoN yaad tum rakhna isey
bhool na jaana jo alphaas tujhe pesh karooN

Ye "Harash" Deta tujhe shubhkaamna Neelam ke saNg
Woh bahaareiN bina patjhar ke tujhe pesh karooN.
Harash Mahajan