Tuesday, July 24, 2012

सूखे पत्ते भी आजकल हवाओं में उड़ने लगे

सूखे पत्ते भी आजकल हवाओं में उड़ने लगे हैं 
शायर जो इनको अपने शेरों में पढने लगे हैं |

ज़मीं पर सरकार अब इन्हें रहने नहीं देती
तो कुछ शेरों में और कुछ ढेरों में सड़ने लगे हैं  |

सूखे पत्ते सी ज़िन्दगी जब भी कोई कहता है
शर्मसार हो ये सब अपने में ही सिकुड़ने लगे हैं  |

ज़मीं को छोड़ कर हवाओं में उड़ने की चाहत
ले डूबी जो ये पत्ते आपस में बिछुड़ने लगे हैं |

कितना ढाते हैं कहर जब इन्हें ज़लाता है कोई
तो ज़हर बन ये पत्ते हवाओं में उतरने  लगे हैं |


________________हर्ष महाजन |










No comments:

Post a Comment