Sunday, November 4, 2012

मेरे जिस्म का पोर-पोर तेरा अहसान मंद है



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मेरे जिस्म का पोर-पोर तेरा अहसान मंद है,
पर तेरा ही खून है अब भड़के तो क्या करें |
मैं तेरी गलियों को कभी का छोड़ आया हूँ,
मगर ये दिल फिर भी धडके तो क्या करें |

________________हर्ष महाजन

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