Thursday, October 10, 2013

बे-सबब मोहब्बत का इज्र्हार होता गया

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बे-सबब मोहब्बत का इज्र्हार होता गया,
दूरियां बढती गईं दिल मगर खोता गया |
क्या कहूँ खामोशियाँ यूँ ज़िंदगी पे तारी हैं,
दिन में हुए ज़श्न बहुत रातों को रोता गया |

___________हर्ष महाजन

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