Friday, November 15, 2013

आओ कहीं बैठ कर मौज़ मनाई जाए


आओ कहीं बैठ कर मौज़ मनाई जाए,
इश्क़ की थाली अब फिर से सजाई जाए ।


बाग में बैठ कर दुपहर की ठंडी धुप में,
उनकी ज़ुल्फ़ों तले इक ग़ज़ल सुनाई जाए ।

मेरी हया मेरा तसव्वुर सब उन्ही से है,
आज भीड़ में उनसे आँख लड़ाई जाए ।

कर्ज़दार हूँ वो साहुकार हैं मोहब्बत के ,
सोचता हूँ फुर्सत से शर्म मिटाई जाए ।

इश्क़ खुदा की देन है सभी ये कहते हैं ,
बता 'हर्ष' ये विदा कैसे निभाई जाए ।

___________हर्ष महाजन

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