Thursday, July 10, 2014

अपने लिए जी लें तो क्या, अपने लिए मर लें तो क्या



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अपने लिए जी लें तो क्या, अपने लिए मर लें तो क्या,
लहरों से,रिश्ते ताक़ पर, उन पर ग़ज़ल पढ़ लें तो क्या |

न थकन कोई न खलिश कोई, महफ़िल-ए-मोहब्बत सज़ गयी,
दौर-ए-ग़ज़ल चलता रहा, ये शौक़ हम कर लें तो क्या |


ये ज़िंदगी है अजीब सी, है मौत उसकी हमसफ़र,
नोक-ए-कलम सी मुख़्तसर, अब दोस्ती सर लें तो क्या |

हम हैं तलाश-ए-यार में, कोई ज़मीं छोडी नहीं,
गर महज़बी हो क़ैद में, कोई
फ़ुसूँ कर लें तो क्या |

अब रास्ता लगे धूल सा, वो भी ज़बीं पे लिखी नहीं,
अब क्या खुदा से गिला करें, इस गम में अब मर लें तो क्या |

____________हर्ष महाजन







फ़ुसूँ = जादू
ज़बीं = पेशानी.

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